सूफ़ी फाइलें : दमा दम मस्त कलंदर


प्रैल में कोरोना वायरस के चलते पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सूफी संत 'लाल शहबाज़ कलंदर' की दरगाह पर होने वाला सालाना उर्स भी रद्द कर दिया गया। 'दमा दम मस्त कलंदर' वाला पीर। उन्ही के शुरू किए हुए कलंदरी तरीके/सिलसिले पर चलने वाले सूफी अक्सर काला/लाल चोगे पहने, गांजा फूंकते हुए, सामाजिक और धार्मिक रिवायतों को धता बताते हुए फिरते हैं। अंग्रेज़ अपने साथ जो यूरोपीय पूंजीवाद और विक्टोरियन आधुनिकता लाए, उसके मापदंडों पर फकीरी और आत्मरोपित अध्यात्म और सरमायादारी का त्याग फिट नहीं बैठते थे। रूहानी दौलत जैसी सूफियाना बातें खारिज की गईं और सूफ़ी फक्कड़ों की निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए, उन्हें मुस्लिम समाज के पतन का कारण तक बताया गया। शायद इसी क्रम में इक़बाल जैसे सुधारकों ने भी इस अलमस्त जीवनशैली का विरोध किया। लेकिन लाल शहबाज़ कलंदर के मुरीद आज भी अपनेआप में एक विद्रोह हैं धार्मिक अतिवाद के खिलाफ, ढकोसलों और दुनियावी भागदौड़ के ख़िलाफ़ !
वैसे सिंध में लाल शहबाज़ कलंदर के साथ झूलेलाल का नाम भी लिया जाता है जो हिन्दुओं के ईष्ट हैं और कहते हैं कि मिथकों में दोनों को एक ही माना गया है। अजब संयोग है कि झूलेलाल का जन्मदिन भी 'चेती चांद' यानि अप्रैल या चैत महीने में ही मनाया जाता है, तकरीबन शहबाज़ कलंदर के उर्स के साथ ही।

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