सूफ़ी फाइलें : दिल्ली दूर है
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निज़ामुद्दीन बाओली & तुगलकाबाद क़िला |
तारीख़ गवाह है कि सियासत और रूहानियत की रस्साकशी और जुगलबंदी ने दिल्ली को कई शक्लों में ढाला। 14वीं सदी में जब सूफ़ी पीर 'हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया' का असर-ओ-रसूख़ उरूज पर था, तब दिल्ली की गद्दी संभाली 'घियासुद्दिन तुगलक' उर्फ़ 'गाज़ी मलिक' ने। घियासुद्दीन तुगलक ने जब सियासत के मुकाबले सूफीवाद का बढ़ता असर देखा तो औलिया को नीचा दिखाने के लिए तरकीबें सोचने लगे। उसी वक़्त निज़ामुद्दीन की डेरे के पास एक बाओली का काम चल रहा था लेकिन घियासूद्दीन ने तुग़लकाबाद के क़िले की तामीर शुरू कर दी और फरमान सुनाया कि दिल्ली के सब मज़दूर सिर्फ़ क़िला बनाने के काम में लगेंगे। लेकिन औलिया के प्रति आदर भाव का असर ऐसा था कि फरमान के बावजूद मज़दूर दिन में क़िले के निर्माण में लगे रहते और रात में दीयों की रोशनी में निज़ामुद्दीन की बाआेली की खुदाई करते। सुल्तान को जब यह पता चला तो उसने शहर भर में तेल की बिक्री पर रोक लगा दी ताकि दीए ना जलाए जाएं लेकिन तमाम रुकावटों के बावजूद औलिया की सरपरस्ती में बाओली का काम बदस्तूर चलता रहा, जिससे सुल्तान और चिढ़ गया। बंगाल दौरे से लौटते वक़्त घियासुद्दीन ने औलिया को सज़ा देने का फरमान भी भिजवा दिया जिसके जवाब में औलिया ने सिर्फ इतना कहा, "हुनूज दिल्ली दूर अस्त.." यानि 'दिल्ली अभी बहुत दूर है' और हुआ भी यूं कि रास्ते में ही सुल्तान एक हादसे का शिकार हुए और कभी दिल्ली वापिस ना लौट सके। उनका बसाया तुग़लकाबाद किला आज भी बियाबान सुनसान पड़ा मिलता है और निज़ामुद्दीन औलिया की बारगाह आज भी पुररौनक है, आबाद है।
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