सूफ़ी फाइलें : कशकोल और ईद का चांद
![]() |
सूफ़ी फकीर कशकोल उठाए हुए |
ईद का चांद देखकर कभी आमिर खुसरो ने कहा था,
"ईद-उल-फितर के चांद ने जहान को खूबसूरत बना दिया /
इस नूर जैसी मय कहां है और कहां है इस चांद जैसा जाम?"
चांद में जाम देखने वाले सूफी संतों ने शायद कुछ इसी तरह अपने भिक्षापात्र यानि 'कशकुल' को भी अर्धचंद्र की शक्ल दे दी होगी, जिसमें वे घूम-घूम कर अनाज मांगते या पानी पीते फिरते थे। 'कश्कुल' एक किस्म का अर्धचंद्राकार कटोरा होता है, जो सूफी दरवेशों के दुनियावी मोहभंग का प्रतीक है, उनकी फकीरी की निशानी। कांधे पर कंबल ओढ़े और हाथ में कशकुल उठाए फिरने वाले सूफी फकीर मानते हैं कि अंतर्मन को भी उस चांद-से गहरे कटोरे की तरह तजुर्बों से भरना चाहिए और समय आने पर सब वापिस बाहर उंडेल देना चाहिए। सूफ़ी शायर हाफ़िज़ ने भी कहा,
"सूरज ही मय है और चांद है जाम,
अगर भरना ही चाहते हो
तो सूरज को आधे चांद में भर दो.."
एक सूफी कहानी में ऐसे ही एक बार बादशाह किसी फकीर का कशकोल भरते-भरते अपना पूरा खज़ाना लुटा देता है मगर कशकोल खाली ही रह जाता है, जिसपर फकीर कहता है,"ऐ नादान! ये ख़्वाहिशात से बना हुआ कशकोल है, जिसे सिर्फ़ क़ब्र की मिट्टी भर सकती है..."
ईद की दुआ में उठे हाथ भी अब कभी चांद लग रहे हैं, तो कभी कशकोल...!
Comments
Post a Comment