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Showing posts from 2014

किसान का पसीना

और एक दिन ऐसा आएगा गोदामों में सड़ रहा अनाज  --बारूद बन जाएगा -- खेत अस्ला उपजाएँगे  और MSP के भरोसे आढ़तियों की प्लिंथ पर  धूप में जलता हुआ किसान  अपना पसीना पोंछेगा---  और लावे की तरह बहता हुआ किसान का पसीना-- ---गाँव की पगडंडियों से होकर शहर की गलियों तक आजाएगा   ---अन्नदाता शायद तभी पहचाना जाएगा ---

ईलाज

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"फसल कैसी हुई अबकी बार ?" अपनी गद्दीदार पहिये-वाली कुर्सी पर डोलते हुए डॉक्टर गुप्ता  पूछता तो गाँव से आई हुई मरीज़ अपना दर्द और झिझक भुला कर ज़रा सहज हो जाती ! मरीज़ों से बतियाते और चुटकुले सुनाते हुए डॉक्टर गुप्ता इंजेक्शन में दवाई भरता और अपने मोटे-मोटे चश्मों से बाज़ की तरह मरीज़ को ढूंढता !  "डॉक्टर साब ! मैं तो अपनी घरवाली के बुखार की दवाई लेने आया था ! आपने तो 'टीका' भी बना दिया !"  "तुमने पहले नहीं बताया की घरवाली घर पर है ! अब तू ही लगवा ले टीका, बुखार का ही तो है ! कोई बिगाड़ नहीं करता ! और दवाई महंगी आती है, भई ! "  डॉक्टर गुप्ता हँसते-हँसते मरीज़ के पति को ही इंजेक्शन लगवाने के लिए मना लेते और डॉक्टर साहब का रुतबा और मान इलाके में यूँ था की कोई इन्हे मना भी नहीं कर सकता था ! अपनी किरकिराती कुर्सी पर झूलते हुए डॉक्टर गुप्ता आने वाले मरीज़ों से गाँव-शेहेर की पूरी खबर-सार लेता रहता ! दोपहर को क्लिनिक बंद करके घर जाते हुए सब्जीवाले की दुकान से चुन-चुन कर ताज़ी सब्ज़ियाँ-फल लेता और ५-८  किलो का थैला हाथ में उठाये शान से घर जाता ! डॉक्टर गुप्ता ...

फौजी की घर वापसी

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जब भी छुट्टी पर फौजी शेर सिंह घर आता, साल भर के राशन से कोठरी भरवा देता ! अपने पहाड़ी गाँव में किसी धाम में जाता तो परोसने वाले बेशक़ थक जाते लेकिन फौजी शेर सिंह का मन खाने से नहीं भरता था ! सुबह अपनी बीवी के साथ जंगल में लकड़ियाँ कटवाने जाता तो उसे कहता, "अरी ऐ लक्ष्मी ! वो गीत तो सुना ज़रा..... जो तू पहले गुनगुनाती थी- 'ओ फौजिया ! आम्ब पके हो घर आ .… ' यह सुनकर उसकी बीवी लकड़ियाँ बाँधते-बटोरते हुए हँसने लगती- "तू फौजी कम, सौदाई  ज़यादा है !" छुट्टी जैसे जैसे ख़त्म होने को आती, काम और बढ़ते जाते ! कच्चे मकान पर खपरैल बदलने से लेकर बेटी का दाखिला कॉलेज में करवाने तक; बूढ़े बाप को P.G.I. में दिखाने से लेकर कबीलदारी निभाने तक- फौजी शेर सिंह एक-एक करके सब काम निपटा अपनी ड्यूटी पर चल देता ! पर रिटायर होने के बाद जब फौजी शेर सिंह गाँव वापिस आया तो पहले जैसी बात न रही ! वो भाभी,जो पहले हर बार कैंटीन से लाया हुआ राशन चौखट से ही थाम लेती थी; इस बार बुलाने पर भी नहीं आयी ! फौजी ने जब अपने खेत में बहाई करने की तैयारी की तो बड़ा भाई भी थोडा तल्ख़ हो गया: "देख शेरा ! तू ...

तीलियाँ

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माचिस की डिबिया में दो ही तीलियाँ रह गयी थी ! एक बुझी हुई सरकारी तीली, जिसके चेहरे पर सरकारी रौब था और मन में पेंशन का संतोष ! दूसरी तीली साबुत थी, जलने और जलाने को तैयार; सिर पर ज्वलनशील मसाले के साथ सोचने वाला दिमाग भी था(बेरोज़गार थी शायद) ! दोनों तीलियाँ पीठ से पीठ सटाये अपनी फ्लैट-नुमा माचिस की डिबिया में सुस्ता रही थीं !   बाहर से आवाज़ें आयी ! कोई चिल्ला रहा था शायद ! फिर कमरे की लाइट जली ! साबुत तीली ने सरकारी तीली को उठाया ! सरकारी तीली करवट लेकर सोई रही !  "मैं क्या कर सकती हूँ ! मेरा बारूद जल चुका है ! मैं रिटायर हो गयी हूँ ! सोने भी दे !" साबुत तीली बेचैन होने लगी ! कमरे में आग लग चुकी थी ! सेंक माचिस की डिबिया तक आने लगा ! साबुत तीली से और बर्दाश्त न हुआ ! वो इस जलते हुए कमरे की आग में कूद गयी ! जो आग बुझने ही वाली थी, वो इस तीली से और बढ़ गयी ! सीलन से भरा पूरा कमरा रौशनी और तपिश से जल उठा !  …लेकिन रिटायर्ड सरकारी तीली बेचारी नींद में ही जल कर ख़ाक़ हो गयी !

धुंद

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source: google images रस्ते में हाथ दे कर हमारी गाड़ी को रोकते हुए वो कहता, "ले बेटे ! मालपूए बनाये हैं ! लेते जा !"  गर्मियों की शाम को हाथ में थैला उठाये वो आता और कहता, "भिन्डी लाया हूँ ! बिटिया को पसंद है ना !" जब भी हम बाज़ार जाते, उसे घर पर छोड़ जाते और हमारे आने तक वो बरामदे वाली चारपाई पर ही बैठा रहता ! राशन की बोरी सिर पर उठाये वो सुबह उस समय आता, जब हम सो कर उठे भी न होते थे ! पिछले साल हमारे बूगनविलिया की बेल को दराती से काटते हुए उसने कहा था," ऐसे ही फूल-पत्तियाँ लगा कर जगह ख़राब करते हो ! यहाँ ये सब झाड़ियाँ साफ़ करवाकर कनक उगाओ !" उसकी बातें सुनकर उसकी नासमझी पर हमने उसे मन ही मन खूब कोसा था ! बालों में जब से उसने लाल-मेहँदी लगाई थी, उसका नाम मज़ाक-मज़ाक में सबने 'मेहँदी-हसन' रख दिया था ! उसका बेटा बताता है कि उसे लाख समझाया कि बेटी की शादी में सूट सिल्वा ले मगर वो ज़िद पर अड़ गया कि नहीं सिलवाऊंगा ! कहता था कि मैंने मज़दूरी करके कमाई की है ताउम्र; सूट पहनकर मैं सहज नहीं हूँगा ! मगर फिर बेटों के समझाने पर कोट सिल्वा लिया था ! जब पहली बा...

पगला

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source: google images हर रविवार की दोपहर वो ज़रूर आता ! गेट से ही 'चाचाजी चाचाजी' पुकारता हुआ वो जैसे ही आता, उसकी चाची खीज कर अपने माथे पर हाथ मारती !  "लो ! आगया अपने चाचे का पगला भतीजा ! छुट्टी वाले दिन भी चैन से नहीं रहने देता ! घर वाले इसको कमरे में बंद करके क्यूँ नहीं रखते !" वो पगला  बड़े हक़ से आकर बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ जाता  और बिना किसी के पूछे अपना और अपने परिवार का हालचाल सुनाने लगता ! "चाचीजी ! मेरी बेटी अब बाहरवीं में हो गयी है ! उसे पिताजी ने स्कूटी भी दिलवा दी है ! गाँव भर में घूमती है अब !" जब कोई पगले की बात पर ध्यान न देता तो वो खीज कर हर कमरे में झाँकता, ताकि किसी को अपनी बातें सुना सके; पर उसे देखते ही बच्चे कमरे की चिटखनी लगा कर बैठ जाते ! कौन सुने इस पगले की बड़ -बड़ ! सन्डे को तो और कितने काम होते हैं करने को ! एक ही दिन तो होता है हफ्ते में अमरीका वाले मामू से स्काइप पर चैट करने के लिए ! और फिर मैटिनी-मूवी भी तो देखनी होती है स्टार-मूवीज पर ! पगला जाकर चाचाजी के कमरे में बैठ जाता ! "चाचाजी ! आप दवाई तो लेते हैं ना? ...

गैंगरेप

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"  लो भई ! आज चूल्हा-न्यौंदा है तुम्हारे नाम !" कार्ड पकड़ाते हुए गाँव के चौकीदार ने कहा ! "अच्छा ! मैंने सुना कि आज पंचायत-घर में मीटिंग हो रही है ! क्रेशर वाले रेसोलूशन पर सहमति बनवाने के लिए ?" "हाँ, हो तो रही है ! पंचायत में पड़ने वाले बाकी गाँव से भी लोग आ रहे हैं ! पंच की बस में ही ढुलाई हो रही है दबादब !" बीड़ी सुलगाते हुए  चौकीदार हंसने लगा ! "ऐसी बात है? कहीं तुझसे दस्तखत तो नहीं करवा लिए ?" "हैं? वैसे मुझसे अंगूठा तो लगवा लिया था तरसेम लाल ने ! उसने तो कहा था कि यहाँ अंगूठा लगा दे, तुम्हारी पुलिया बन जाएगी और  रस्ते पक्के हो जाएंगे ! मैं अनपढ़ आदमी ! मैंने सोचा वैसा ही  होगा ! मुझे तो पता भी न था कि क्रेशर पर मंज़ूरी के कागज़ हैं !" चौकीदार परेशान सा होकर बोला ! "च… च…च… ! यह क्या कर आये ! अब इन्होने धक्के से यहाँ नदी के किनारे क्रेशर लगा देना है ! भेड़ -बकरियों की तरह लोगों से मंज़ूरी ले रहे हैं ! झूठ बोल कर ! इन्हीं पंचों-प्रधानों ने नदी गैर-कानूनी खनन वालों को दे रखी थी ! अब और कसर क्रेशर पूरी कर देगा----!" चौकीद...

दो हाथ

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"बेलदारी का काम करने की आदत है न ! खेतों का काम करके हाथों से खून चल पड़ता है ! मैं तो यहाँ परदेस में इसीलिए काम को आयी हूँ ताकि ध्यान बँट जाए ! घर पर तो बेटों की याद आती है ! मेरे दो बेटे मेरे सामने ख़त्म हो गए ! रो-रो कर मेरी आँखों का पानी सूख गया ! अब मेरे तीसरे बेटे  के घर बच्चा हुआ है.....  ६ साल बाद ! २ महीने का एडवांस दे दो, बीबीजी ! बदायूं जाना है अबकी बार ! " "पैसे का क्या करेगी ?" "५०० रुपये नाती ने मांगे हैं ! कुछ मर्द को चाहिए… दीवार पक्की करवाने को। बेटा भी मांग रहा था, सब सामान मथुरा छोड़ आया था ,अब दोबारा बर्तन वगेरह लेने हैं !" "अपने पास क्या बचेगा तेरे ? दवा-दारु को कुछ रखा है या नहीं?" "मेरे पास ये दो हाथ हैं, बीबीजी ! इनमें क्या बचाऊँ, क्या छिपाऊँ !" अपने झुर्राए हुए दरारों से सने हाथों को देखती हुई वो अपनी झुग्गी की ओर चल दी ! और मैं अपने हाथों की लकीरों में अब भी कुछ ढूँढ रही थी !

बकरी बनाम बहाना

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  "नदी किनारे वाली ज़मीन एक्वायर हुई थी तब मेरे नाम का ५० लाख का चेक आया था ! बहू-बेटे ने पैसा बैंक में जमा  करवा दिए और एक गाडी भी खरीद ली थी ! यहाँ कॉलोनी के लिए प्लाट काटने शुरू हो गये ! हमारे देखते-देखते लहलहाती हरियाली , बस्तियों में तब्दील हो गयी ! बकरी चराने को भी कोई ठौर ढूंढ़ना पड़ता है आजकल !" "ये बकरी क्यों चराती हो अब भी? अब तोह करोड़पति हो गये हो आप लोग ! बुढ़ापे में आराम किया करो न !" "बेटा ! ये बकरी नहीं, बहाना है ! बुढ़ापा तो उस दिन महसूस होगा, जब घर पर खाली बैठ जाउंगी ! इस बकरी के बहाने सैर कर लेती हूँ; गाँव भर में घूमना हो जाता है ! वरना आजकल कोई बिना मतलब कहाँ बाहर निकलता है ! सब अंदरोल बन गए हैं ! या तो टीवी के आगे या फोन पर....मिलना-मिलाना तो ब्याह-शादियों में भी २ मिनट का होता है अब तो ! किसी पोते-दोहते को कहूँगी कि सैर करवा ला तो उल्टा जवाब या बहाने ही सुनाएंगे ! इसीलिए मैं बकरी को चराने के साथ सैर भी कर लेती हूँ !  अपने गाँव की खबरें अब टीवी में थोड़े ही मिलती हैं ! खेतों में घास लेने आई बहुओं से उनके घर-परिवार का पूछ लेती हूँ ! स्कूल...

हाट

~ रिक्शा की किर्र-किर्र को तोड़ते हुए उसने रिक्शावाले से पूछा : " ऐ भाई ! यहाँ की हाट में क्या-क्या मिलता है?" रिक्शावाले ने अभ्यस्त स्वर में कहा : "यहाँ सब मिलता है, मेमसाहिब ! दुनियाभर का सामान ! किसी बड़े शेहेर से कम नहीं, ज़यादा ही वैरायटी है ! लोग दूर-दूर से आते हैं ! " उसे हंसी सी आगयी : "अच्छा? और ऐसा क्या है जो यहाँ  'नहीं' मिलता है? " रिक्शावाले ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और फिर अपनी धुन में बोल गया: "मेमसाहिब ! इन बाज़ारों, हाट और दुकानों में 'चैन' नहीं मिलता है ! फिर भी लोग क्या पता क्यों चले आते हैं !" ये सुनकर कुछ और पूछने को बचा कहाँ था ! कभी वो रस्ते को देख रही थी और कभी  रस्ते पर दौड़ती अपनी परछाईं को ! ~  

..अल्फ़ाज़ का पीछा करते..

हरियाली से घिरे इस घर में कोई 'लिखने' के सिवा और कर भी क्या सकता था ! मगर उसके अलफ़ाज़ को तो मानो कोई दीमक खा गयी थी ! रोज़ सुबह उठ कर किसी नए टॉपिक पर लिखने का सोचती या फिर कोई कहानी पढ़ने बैठती मगर ध्यान, अलफ़ाज़ से हाथ छुड़ा कर, किसी दूर की सोच के मैदानों में दौड़ने लगता ! 'Writer's Block' का बहाना करके अपने आप को समझा लेती मगर जब मन बना कर लैपटॉप पर कुछ लिखने लगती तो घंटों खाली स्क्रीन को देखती जाती ! आखिर क्या लिखे और किसके बारे में लिखे ! लोगों के बारे में क्या कहना है। कित्ना लिखना है। लोगों से दूर भागने को ही तो लिखती थी ! फिर क्यों लिखे उन्ही लोगों के बारे में ! उबकाई सी आती थी हर किस्से, हर कहानी पर ! अखबार भी बोरिंग से ही थे ! हर नोवेल कितना  प्रेडिक्टेबल ! ऐसा क्या था जो पहले कहा नहीं गया या लिखा नहीं गया ! और मार्केट में लेखकों की एक नयी खेप तैयार हो चुकी थी अब तक ! कौन इतना खाली है कि उसको पढ़ता ! पब्लिशर से भी कोई इनपुट नहीं था ! ६ महीने बीत गये थे ! '…कहानी को धक्का लगा कर कागज़ पर उतारने में थक गयी थी ! अब कहानी की ऊँगली पकड़ कर चलने का वक़्त था...कहानी क...

Let's Grow

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With a vision of promoting sustainability, literally at grass-root level, we decided to undertake Farming Experiment on Organic (Conventional) lines on one of our fields. Prepared the beds for cropping vegetable seeds. Flood Irrigation is what is generally practiced; but optimum watering was ensured this season instead. Initially laughed at, but my experiment to generate LEAF MOULD in an abandoned PITCHER turned out to be useful as all the dry leaves in autumn found their right place. (The quantity of Leaf Mould generated wasn't sufficient enough to be used in farm, but was used in Garden Pots though)  studied the state-sponsored research institutes' manual on the scientific cropping techniques. Biggest regret: Not exactly Heirloom seeds were sown but Hybrid varieties for Turnips and Palak. Thankfully, the garlic and potato seeds were organic. and finally...the buds.. appeared out of the damp soil. one word: BLISS the 'green' ...

अमृता प्रीतम के नाम....

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    यह शुरुआत नहीं-- शुमारा है एक पुराने सिलसिले का !