तीलियाँ

माचिस की डिबिया में दो ही तीलियाँ रह गयी थी ! एक बुझी हुई सरकारी तीली, जिसके चेहरे पर सरकारी रौब था और मन में पेंशन का संतोष ! दूसरी तीली साबुत थी, जलने और जलाने को तैयार; सिर पर ज्वलनशील मसाले के साथ सोचने वाला दिमाग भी था(बेरोज़गार थी शायद) ! दोनों तीलियाँ पीठ से पीठ सटाये अपनी फ्लैट-नुमा माचिस की डिबिया में सुस्ता रही थीं ! 
 बाहर से आवाज़ें आयी ! कोई चिल्ला रहा था शायद ! फिर कमरे की लाइट जली ! साबुत तीली ने सरकारी तीली को उठाया ! सरकारी तीली करवट लेकर सोई रही ! 
"मैं क्या कर सकती हूँ ! मेरा बारूद जल चुका है ! मैं रिटायर हो गयी हूँ ! सोने भी दे !"
साबुत तीली बेचैन होने लगी ! कमरे में आग लग चुकी थी ! सेंक माचिस की डिबिया तक आने लगा ! साबुत तीली से और बर्दाश्त न हुआ ! वो इस जलते हुए कमरे की आग में कूद गयी ! जो आग बुझने ही वाली थी, वो इस तीली से और बढ़ गयी ! सीलन से भरा पूरा कमरा रौशनी और तपिश से जल उठा ! 
…लेकिन रिटायर्ड सरकारी तीली बेचारी नींद में ही जल कर ख़ाक़ हो गयी !

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