पगला
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"लो ! आगया अपने चाचे का पगला भतीजा ! छुट्टी वाले दिन भी चैन से नहीं रहने देता ! घर वाले इसको कमरे में बंद करके क्यूँ नहीं रखते !"
वो पगला बड़े हक़ से आकर बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ जाता और बिना किसी के पूछे अपना और अपने परिवार का हालचाल सुनाने लगता !
"चाचीजी ! मेरी बेटी अब बाहरवीं में हो गयी है ! उसे पिताजी ने स्कूटी भी दिलवा दी है ! गाँव भर में घूमती है अब !"
जब कोई पगले की बात पर ध्यान न देता तो वो खीज कर हर कमरे में झाँकता, ताकि किसी को अपनी बातें सुना सके; पर उसे देखते ही बच्चे कमरे की चिटखनी लगा कर बैठ जाते ! कौन सुने इस पगले की बड़ -बड़ ! सन्डे को तो और कितने काम होते हैं करने को ! एक ही दिन तो होता है हफ्ते में अमरीका वाले मामू से स्काइप पर चैट करने के लिए ! और फिर मैटिनी-मूवी भी तो देखनी होती है स्टार-मूवीज पर ! पगला जाकर चाचाजी के कमरे में बैठ जाता !
"चाचाजी ! आप दवाई तो लेते हैं ना? दवाई न छोड़ना ! मैंने छोड़ दी थी, फिर मैं दोबारा 'अपसेट' हो गया था !"
चाचाजी चुपचाप उसकी बातें सुनते रहते !
"चाचाजी ! इस बार चुनाव में नमो की लहर है ! है न ? है न चाचाजी? चाचाजी????"
चाचाजी के खर्राटे सुनकर वो पगला कमरे से बाहर आ जाता ! इधर-उधर देखता और फिर सर खुजलाता हुआ चल देता !
"चाचीजी ! आप आना हमारे घर ! अब मैं मंदिर चला जाता हूँ ! वैसे मंदिर में कौन से भगवान् मिलने हैं ! मुझे देखकर आप सब की तरह वो भी छुप जाते हैं ! मैं आवाज़ें देता हूँ, कभी सामने से जवाब ही नहीं देते !"
अपनी बातों पर खुद ही खिलखिलाता हुआ वो गेट से बाहर चला जाता !
चाची बड़बड़ाती हुई कहती,"कैसे हँसता हुआ जा रहा है ! इसे क्या फ़िक्र है दीन- दुनियादारी की ! पगला कहीं का ! जा निशु ! गेट बंद कर आ ! "
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