हाट
~ रिक्शा की किर्र-किर्र को तोड़ते हुए उसने रिक्शावाले से पूछा :
" ऐ भाई ! यहाँ की हाट में क्या-क्या मिलता है?"
रिक्शावाले ने अभ्यस्त स्वर में कहा :
"यहाँ सब मिलता है, मेमसाहिब ! दुनियाभर का सामान ! किसी बड़े शेहेर से कम नहीं, ज़यादा ही वैरायटी है ! लोग दूर-दूर से आते हैं !"
उसे हंसी सी आगयी :
"अच्छा? और ऐसा क्या है जो यहाँ 'नहीं' मिलता है?"
रिक्शावाले ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और फिर अपनी धुन में बोल गया:
"मेमसाहिब ! इन बाज़ारों, हाट और दुकानों में 'चैन' नहीं मिलता है ! फिर भी लोग क्या पता क्यों चले आते हैं !"
ये सुनकर कुछ और पूछने को बचा कहाँ था ! कभी वो रस्ते को देख रही थी और कभी रस्ते पर दौड़ती अपनी परछाईं को ! ~
" ऐ भाई ! यहाँ की हाट में क्या-क्या मिलता है?"
रिक्शावाले ने अभ्यस्त स्वर में कहा :
"यहाँ सब मिलता है, मेमसाहिब ! दुनियाभर का सामान ! किसी बड़े शेहेर से कम नहीं, ज़यादा ही वैरायटी है ! लोग दूर-दूर से आते हैं !"
उसे हंसी सी आगयी :
"अच्छा? और ऐसा क्या है जो यहाँ 'नहीं' मिलता है?"
रिक्शावाले ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और फिर अपनी धुन में बोल गया:
"मेमसाहिब ! इन बाज़ारों, हाट और दुकानों में 'चैन' नहीं मिलता है ! फिर भी लोग क्या पता क्यों चले आते हैं !"
ये सुनकर कुछ और पूछने को बचा कहाँ था ! कभी वो रस्ते को देख रही थी और कभी रस्ते पर दौड़ती अपनी परछाईं को ! ~
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