फौजी की घर वापसी

जब भी छुट्टी पर फौजी शेर सिंह घर आता, साल भर के राशन से कोठरी भरवा देता ! अपने पहाड़ी गाँव में किसी धाम में जाता तो परोसने वाले बेशक़ थक जाते लेकिन फौजी शेर सिंह का मन खाने से नहीं भरता था ! सुबह अपनी बीवी के साथ जंगल में लकड़ियाँ कटवाने जाता तो उसे कहता, "अरी ऐ लक्ष्मी ! वो गीत तो सुना ज़रा..... जो तू पहले गुनगुनाती थी-'ओ फौजिया ! आम्ब पके हो घर आ.… ' यह सुनकर उसकी बीवी लकड़ियाँ बाँधते-बटोरते हुए हँसने लगती- "तू फौजी कम, सौदाई  ज़यादा है !" छुट्टी जैसे जैसे ख़त्म होने को आती, काम और बढ़ते जाते ! कच्चे मकान पर खपरैल बदलने से लेकर बेटी का दाखिला कॉलेज में करवाने तक; बूढ़े बाप को P.G.I. में दिखाने से लेकर कबीलदारी निभाने तक- फौजी शेर सिंह एक-एक करके सब काम निपटा अपनी ड्यूटी पर चल देता !
पर रिटायर होने के बाद जब फौजी शेर सिंह गाँव वापिस आया तो पहले जैसी बात न रही ! वो भाभी,जो पहले हर बार कैंटीन से लाया हुआ राशन चौखट से ही थाम लेती थी; इस बार बुलाने पर भी नहीं आयी ! फौजी ने जब अपने खेत में बहाई करने की तैयारी की तो बड़ा भाई भी थोडा तल्ख़ हो गया: "देख शेरा ! तू फौजी बन्दा ! सारी उम्र बाहर रहा है ! तुझे क्या पता खेती-बाड़ी में कितना जब्ब है ! कोई फायदा नहीं होगा; खामखाँ पैसा न लगा ! ये मिट्टी-खेतों के काम हमारे लिए छोड़ दे ! तू शहर जाकर कोई नौकरी देख ! तुझसे नहीं होगा यहाँ गुज़ारा !"
फौजी शेर सिंह पालमपुर की एक फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी के लिए दरख्वास्त तो दे आया, पर भारी दिल से दिन काटने लगा ! गाँव में पञ्च का चुनाव था; बेटे-बहू और समधियों की सलाह पर इस बार फौजी ने भी पर्चा भर दिया ! पर फौजी को पञ्च के चुनाव में उतरते देख कई गाँववालों ने फौजी को 'बाहर का आदमी' तक बता दिया ! कई बार फौजी रात को रोते-रोते सोया ! कानों में और ख्याल में एक ही बात खटकती थी - "बाहर का आदमी" ! फौजी अगर घर-गाँव की  चार-दीवारी से निकल कर देश की चार-दीवारी या सरहद पर पहरेदारी करे तो वो 'बाहर' का हो जाता है क्या !

.... घर वापसी के बाद भी... नुकीली तारों वाली कितनी सरहदें हैं.…जो फौजी को रात भर जगाये रखती हैं ! 

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