सूफ़ी फाइलें | आमिर ख़ुसरो : सूफ़ी सुख़नवर

'अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई। जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।' पहली दफ़ा ही होगा कि ' तूती-ए-हिन्द ', आमिर ख़ुसरो के उर्स-मुबारक पर निज़ामुद्दीन का बरामदा क़व्वालियों से गूँज नहीं रहा होगा। कोरोना लॉकडाउन के चलते जून माह में भी 'महबूब-ए-इलाही' निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह ज़ायरीन के लिए बंद ही रहेगी और आज आमिर खुसरो को याद करते हुए हम सिर्फ़ उनकी ज़िन्दगी और शायरी का ज़िक्र ही कर सकते हैं। सियासत की सड़क पर चलते-चलते तसव्वुफ़ के बरगद के नीचे बैठकर सुस्ता लेने वाले खुसरो ने दिल्ली में ग्यारह दफ़ा निज़ाम बदलते देखा और पांच सुल्तानों के दरबार में बतौर राज-कवि भी रहे। लेकिन दुनियावी ज़िम्मेदारियों की गठरी कंधे पर उठाए हुए भी खुसरो, अपने मुर्शिद हज़रत निज़ामुद्दीन की सोहबत में रूहानी गहराईयों में उतरते चले गए। जहाँ निज़ामुद्दीन और ग़ियासुद्दीन तुग़लक़ के बीच सियासी रस्साकशी बढ़ी, वहीं खुसरो ने अपने पीर की बारगाह पर न हाज़री देनी छोड़ी और न सुल्तान को ही नाराज़ किया। इसी सिलसिले में खुसरो ने ' तुग़लक़नामा ' भी लिखा जो ग़ियासुद्दीन के बसाये इस नए शहर का लेख...