देसगांव ( अभिषेक श्रीवास्तव ) : पुस्तक-समीक्षा



अभिषेक श्रीवास्तव की किताब 'देसगांव' तृणमूल (grass root level) की रिपोर्टों का एक ऐसा दस्ता है जो गैर-प्रायोजित ज़मीनी जनांदोलनों का लेखा-जोखा बयान करती है।
जिला बनारस के एक छोटे से गांव से चलने वाले 'अगोरा प्रकाशन' से आई उनकी ये किताब जनआंदोलनों के पीछे की पॉलिटिक्स को भी उतनी ही तफ़्सील से बेनकाब करती है जितनी वास्तविक संघर्षों की कहानी कहती है। एक संवाददाता के तौर पर धूल फांकते हुए कच्ची पगडंडियों से गुज़रकर कहानी की जड़ तक जाकर, आम- जन से संवाद स्थापित कर फैक्ट्स खोद कर लाने के लिए लेखक के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है। कहीं भी लेखक की अपनी विचारधारा या bias रिपोर्ट पर हावी होता नहीं दिखता। हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान की रिपोर्ट पढ़कर लगा कि कितना साहसिक और ज़रूरी है इन microscopic मुद्दों को मुख्यधारा में लाकर खड़ा करना। ना तो अपनी तरह की ये पहली किताब है, और चाहूंगी कि ना यह आख़िरी किताब हो। न्यूजरूम की काग़ज़ी पत्रकारिता के सामने एक बड़ी चुनौती रखती है ' देसगांव' जैसी ज़मीनी पत्रकारिता। पढ़कर देखिएगा...! 

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