बोलना ही है ( रवीश कुमार ) : पुस्तक-समीक्षा




रवीश जी से अब तक एक ही बार बात कर पाई हूँ और ट्रोल्स के हमलों के निजी होने की शुरुआत ही थी तब। एक आम नागरिक के तौर पर सिर्फ़ इतना ही कहा था उनसे कि हम आपके साथ हैं। मेरे जैसे किसी भी nobody के उनके साथ होने न होने से कुछ बदलता नहीं है पर उनके बोलने से मेरे जैसों की आवाज़ और मुद्दे ज़रूर सत्तासीनों के कानों में गूँज पाते हैं। रवीश जी की साफ़गोई, अन्याय के ख़िलाफ़ उनकी बेबाकी और ज़मीनी आदमी होने के चलते आम जन के मुद्दों को लेकर उनकी संवेदनशीलता ही उनकी पहचान है। उनकी किताब 'बोलना ही है' के लिए आबिद अदीब का एक शे'र ही कहा जा सकता है:

'जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे
वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं..'

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