जेएनयू में नामवर सिंह ( सुमन केशरी ) : पुस्तक-समीक्षा




"Let's sow the earth with crazy dreams.."

अरावली की पहाड़ियों में बोए गए ऐसे ही आइडियल सपनों की जन्मस्थली रहा है जेएनयू, जिसकी नींव को सींचने वाले हुए नामवर सिंह जैसे शिक्षक, जिन्होंने, बक़ौल प्रो.पुरुषोत्तम अग्रवाल सर, न सिर्फ पढ़ाया बल्कि सिखाया। 'जेएनयू में नामवर सिंह' को पढ़ते हुए आप सीपिया-टोन में रंगे 70 के दशक के जेएनयू को देख पाएँगे, जहाँ के बोहेमियनपन में counter-culture की झलक थी, जहाँ वर्चस्व की संस्कृति का विकल्प तलाशते हुए नामवर सिंह 'दूसरी परंपरा की खोज' (की रचना) कर देते हैं; 'सेन्टर ऑफ इंडियन लैंगुएजेज़' में हिंदी और उर्दू को साथ-साथ पढ़ाने की पुरज़ोर वक़ालत करते हैं ; जहाँ स्टूडेंट यूनियन के विरोध पर इंदिरा गांधी चांसलर पद से इस्तीफा दे देती हैं; जहाँ केवल आर्किटेक्चर में ही नहीं, बल्कि बौद्धिक वातावरण में एक aesthetic dimension रहता है; जहाँ कमज़ोर आर्थिक और सामाजिक पृष्टभूमि से आने वालों को दाखिले में तरजीह दी जाती है।
सुमन केशरी जी ने किताब में जेएनयू और डॉ नामवर सिंह से वाबस्ता विद्यार्थियों, अध्यापकों, कर्मचारियों के लेखों का अद्भुत संचयन किया है, जिन्हें पढ़ते हुए आप इस विश्विद्यालय के कल्चर को और अच्छे से समझ पाते हैं। आज जब मेनस्ट्रीम मीडिया में जेएनयू जैसे संस्थानों को बदनाम किया जा रहा हो, ऐसे में 'जेएनयू में नामवर सिंह' जैसी किताब को पढ़कर न सिर्फ नुक्ता-ए-नज़र साफ़ होता है बल्कि ऐसे संस्थानों और शिक्षकों के लिए सम्मान और बढ़ जाता है।

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