JNU में छात्र संघ चुनाव


हम सब ने democracy का नाम सुना है और हर पाँच साल बाद वोट देकर या चाय की टपरी पर खड़े हुए सरकार की नुक्ताचीनी कर खुद को democracy के ज़िंदा होने का दिलासा देते रहते हैं। पर इस काग़ज़ी परिभाषा के आगे जिस democracy की परिकल्पना हमने utopian लेखों में पढ़ी-सुनी है, उसको मैं करीब से देख पाई हूँ JNU के student union election campaign में। जिस JNU को anti-national ब्रांड करके पूरे देश दुनिया में बदनाम किया गया, दरअसल उसी इकलौते institute में ही हमारे constitutional principles को बातमीज़ लागू होते देख पाई हूँ। हुड़दंगबाज़ी, शोर शराबे और हिंसा के लिए बदनाम STUDENT UNION ELECTIONS की छवि दिमाग में लेकर गयी थी, पर इतना सभ्य, balanced और intellectual campaign देखकर लगा कि JNUSU इलेक्शन को तो बाकी universities में भी मॉडल के तौर पर follow किया जाना चाहिए। presidential कैंडिडेट्स के भाषणों में सिर्फ university ही नहीं, बल्कि सामाजिक, राष्ट्रीय मुद्दों को भी जगह दी गयी। Infact, हमारे राजनैतिक दल भी अगर महँगी रैलियां और खर्चीले publicity campaigns की बजाये ऐसे साँझे मंच से debates और discussion करके अपना पक्ष रखें तो शायद थोड़े genuine मुद्दों की राजनीति होने लगे। राजनीति को औरतों के लिए एक गंदी चीज़ बताने वालों को भी एक बार JNU के ELECTION CAMPAIGN को CASE STUDY के तौर पर देखना चाहिए ताकि राजनीति में GENDER PARITY का असल रूप कैसा हो, यह समझा जा सके। बाकी, JNU जैसी एक socio-political laboratory और student politics के बारे में सिर्फ प्रोपगंडा के आधार पर बनी अपनी राय को हमें फिर से आंकने की ज़रूरत है, ताकि किसी भी बहाने से दोबारा 'genuine' student politics को बदनाम ना किया जा सके।

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