हीरो और छवि



पिछले हफ्ते अल्लामा इक़बाल की ज़िंदगी पर आधारित एक नाटक देखा, "सर इक़बाल", जिसमें उनका सेक्युलर प्रवृत्ति से धीरे-धीरे इस्लामिक स्टेट के तरफदार के तौर पर evolution जानने को मिला। ऐसे ही इस हफ्ते महाराजा दलीप सिंह पर बनी फिल्म The Black Prince देखी, जिसमें क्रिश्चियन faith और British माहौल की तरबियत में पला-बड़ा दलीप, हालात के साथ evolve होते हुए उम्र के आखिरी पड़ाव में दोबारा सिख पंथ और पंजाब की तरफ लौटना चाहता है, अपना राजपाट वापस जीतना चाहता है पर असफल रह जाता है। इस्मत चुगताई पर आधारित एक नाटक करते हुए भी सआदत हसन 'मंटो' के ऐसे ही evolution के बारे में जाना कि कैसे एक आज़ाद-ख्याल और सेक्युलर लेखक, दंगों और मज़हबी मतभेदों से क्षुब्ध होकर हिंदोस्ताँ-पाकिस्तान की तकसीम को जायज़ ठहराने लगता है और हालात से समझौता कर पाकिस्तान जाकर बस जाता है। यह तमाम किस्से हमारे GLORIFIED HEROES को लेकर पाले हमारे भ्रम तोड़ते हैं और यही याद दिलाते हैं कि कोई भी हीरो superhuman quality से नहीं भरा, हर कोई कमजोर पड़ सकता है, कोई भी छवि permanent नहीं होती और evolution किसी को भी पूरी तरह बदल कर एक नया इंसान बना सकता है; इसीलिए या तो किसी के फैन मत बनिए और अगर बनें भी तो अपने heroes के human errors और evolution को भी स्वीकार करें; उनसे Infallibility की unrealistic उम्मीद न रखें। यह हीरो आपके माता-पिता, आपके प्रिय नेता, आपके पसंदीदा ऐक्टर, आपके चहेते स्पोर्ट्सपर्सन, आपके मनपसंद लेखक या आपके mentors भी हो सकते हैं।

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