जनता के मन की बात
कानून जब अपने फैसले मुख्यतः 'collective conscience' के आधार पर लेने लगे तो बहुत ज़रूरी हो जाता है यह जानना कि जनता की राय बन कैसे रही है या कैसे 'बनाई' जा रही है। राजनीति तो populism से प्रभावित है ही। वहीं newsrooms में हर रात बहस करने वाले expert panels भी काफी हद तक opinion manufacture करने की फैक्ट्री ही बन चुके हैं। अलग अलग (सोशल) मीडिया पर propaganda फैलाया जा रहा है और जनवादी/राष्ट्रवादी लिफाफे में लपेट कर market किया जा रहा है। इसी तर्ज पर जनवादी आंदोलनों की आड़ में बहुत से संगठन अपने निजी एजेंडे भुना रहे हैं। ऐसीे ही रायशुमारी के आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों में भी फैसले लेने के लिए सरकारों को बाध्य किया जा रहा है।
सोचने की बात यह है कि जनतंत्र क्या सिर्फ एक भीड़तंत्र है जो आज majority की हाँ या ना पर चलता है? क्या हमें सोशल मीडिया के इस दौर में रायशुमारी यानि हर बात पर direct referendums मंजूर हो गए हैं? क्या हमारी राय आज सचमुच हमारे ही 'मन की बात' है?
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