वृद्धाश्रम: एक सामाजिक परिवर्तन
हाल ही में इंटरनेट पर वायरल हो रही ये तस्वीर एक दादी और पोती की वृद्धाश्रम में हुई अचानक मुलाक़ात की है जिसमें अपनी ही दादी को घर से दूर वृद्धाश्रम में रहता पाकर पोती भावुक हो गयी। इसे शेयर करते हुए लोग वृद्धाश्रमों और उन बेटे-बेटियों को मलामतें भेज रहे हैं जो अपने वाल्दैन को बुढ़ापे में इन old age homes में जाने को 'मजबूर करते' हैं। भावुकता और भेड़चाल से थोड़ा दूर होकर देखा जाए तो भारतीय समाज में शुरू से ही वृद्धाश्रमों को खलनायक के तौर पर पेश किया गया है क्योंकि हमारे समाज में संयुक्त-परिवार में घर के बुज़ुर्गों की छत्रछाया में पालन-बढ़ना ही आदर्श माना जाता है और आमतौर पर nuclear family system को ही हर तरह के सामाजिक पतन की वजह बताया जाता है। इतिहास को देखें तो पता चलता है कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के साथ ही पलायन के चलते संयुक्त परिवार का अस्तित्व कमज़ोर होना शुरू हुआ और nuclear family एक functional necessity के तौर पर उभरी। मगर असल में हम में से कितने ही लोग nuclear family में एक अच्छी तरबियत के साथ पले-बड़े और अच्छे नागरिक बनकर निकले। हम लोग संयुक्त परिवारों में होने वाले झगड़ों, फैमिली-पॉलिटिक्स और दबावों को भी देखने के आदी रहे हैं और अक्सर घरों में फर्नीचर की तरह पड़े हुए बुज़ुर्गों की अनदेखी से भी वाकिफ़ हैं। यूरोप में अच्छी दवा-शिफ़ा और तवज्जो के चलते बुज़ुर्ग खुद ही इन वृद्धाश्रमों में जाना पसंद करते हैं क्योंकि modern lifestyle और महत्वकांशी career-oriented जनरेशन से full time attention की उम्मीद रखना उनके साथ भी नाइंसाफी है। globalisation के साथ यही lifestyle आज की भारतीय पीढ़ी का भी है और अगर कोई आपसी सहमति से माता-पिता को पूरी मेडिकल तवज्जो के लिए वृद्धाश्रम में लेकर जाता भी है तो उसमें moral judgement करना कितना सही है? एक उम्र के बाद घर के बुज़ुर्गों का socialisation तक़रीबन ख़त्म ही हो जाता है और ऐसे में वृद्धाश्रम न सिर्फ़ उन्हें उनके हमउम्र और हमख्याल लोगों के बीच रहने का मौक़ा देते हैं बल्कि घर की चारदीवारी में होने वाली (ऐच्छिक या अनैच्छिक) अवहेलना से बचाते भी हैं। ऐसे कई NGO's वृद्धों की तनहाई बाँटने के लिए counsellers का इंतज़ाम करते हैं जो उनसे बातें करते हैं और उनके दुख-सुख बाँटते हैं। मेरे ख़याल में इस सब को एक सामाजिक परिवर्तन के तौर पर देखा जाना चाहिए। वृद्धाश्रमों की व्यावहारिकता को नज़रअंदाज़ करके moral judgement पास करना और इन्हें गिरते पारिवारिक मूल्यों का बाइस बताना एकतरफ़ा नज़रिया है।
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