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Showing posts from February, 2014

धुंद

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source: google images रस्ते में हाथ दे कर हमारी गाड़ी को रोकते हुए वो कहता, "ले बेटे ! मालपूए बनाये हैं ! लेते जा !"  गर्मियों की शाम को हाथ में थैला उठाये वो आता और कहता, "भिन्डी लाया हूँ ! बिटिया को पसंद है ना !" जब भी हम बाज़ार जाते, उसे घर पर छोड़ जाते और हमारे आने तक वो बरामदे वाली चारपाई पर ही बैठा रहता ! राशन की बोरी सिर पर उठाये वो सुबह उस समय आता, जब हम सो कर उठे भी न होते थे ! पिछले साल हमारे बूगनविलिया की बेल को दराती से काटते हुए उसने कहा था," ऐसे ही फूल-पत्तियाँ लगा कर जगह ख़राब करते हो ! यहाँ ये सब झाड़ियाँ साफ़ करवाकर कनक उगाओ !" उसकी बातें सुनकर उसकी नासमझी पर हमने उसे मन ही मन खूब कोसा था ! बालों में जब से उसने लाल-मेहँदी लगाई थी, उसका नाम मज़ाक-मज़ाक में सबने 'मेहँदी-हसन' रख दिया था ! उसका बेटा बताता है कि उसे लाख समझाया कि बेटी की शादी में सूट सिल्वा ले मगर वो ज़िद पर अड़ गया कि नहीं सिलवाऊंगा ! कहता था कि मैंने मज़दूरी करके कमाई की है ताउम्र; सूट पहनकर मैं सहज नहीं हूँगा ! मगर फिर बेटों के समझाने पर कोट सिल्वा लिया था ! जब पहली बा...

पगला

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source: google images हर रविवार की दोपहर वो ज़रूर आता ! गेट से ही 'चाचाजी चाचाजी' पुकारता हुआ वो जैसे ही आता, उसकी चाची खीज कर अपने माथे पर हाथ मारती !  "लो ! आगया अपने चाचे का पगला भतीजा ! छुट्टी वाले दिन भी चैन से नहीं रहने देता ! घर वाले इसको कमरे में बंद करके क्यूँ नहीं रखते !" वो पगला  बड़े हक़ से आकर बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ जाता  और बिना किसी के पूछे अपना और अपने परिवार का हालचाल सुनाने लगता ! "चाचीजी ! मेरी बेटी अब बाहरवीं में हो गयी है ! उसे पिताजी ने स्कूटी भी दिलवा दी है ! गाँव भर में घूमती है अब !" जब कोई पगले की बात पर ध्यान न देता तो वो खीज कर हर कमरे में झाँकता, ताकि किसी को अपनी बातें सुना सके; पर उसे देखते ही बच्चे कमरे की चिटखनी लगा कर बैठ जाते ! कौन सुने इस पगले की बड़ -बड़ ! सन्डे को तो और कितने काम होते हैं करने को ! एक ही दिन तो होता है हफ्ते में अमरीका वाले मामू से स्काइप पर चैट करने के लिए ! और फिर मैटिनी-मूवी भी तो देखनी होती है स्टार-मूवीज पर ! पगला जाकर चाचाजी के कमरे में बैठ जाता ! "चाचाजी ! आप दवाई तो लेते हैं ना? ...

गैंगरेप

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"  लो भई ! आज चूल्हा-न्यौंदा है तुम्हारे नाम !" कार्ड पकड़ाते हुए गाँव के चौकीदार ने कहा ! "अच्छा ! मैंने सुना कि आज पंचायत-घर में मीटिंग हो रही है ! क्रेशर वाले रेसोलूशन पर सहमति बनवाने के लिए ?" "हाँ, हो तो रही है ! पंचायत में पड़ने वाले बाकी गाँव से भी लोग आ रहे हैं ! पंच की बस में ही ढुलाई हो रही है दबादब !" बीड़ी सुलगाते हुए  चौकीदार हंसने लगा ! "ऐसी बात है? कहीं तुझसे दस्तखत तो नहीं करवा लिए ?" "हैं? वैसे मुझसे अंगूठा तो लगवा लिया था तरसेम लाल ने ! उसने तो कहा था कि यहाँ अंगूठा लगा दे, तुम्हारी पुलिया बन जाएगी और  रस्ते पक्के हो जाएंगे ! मैं अनपढ़ आदमी ! मैंने सोचा वैसा ही  होगा ! मुझे तो पता भी न था कि क्रेशर पर मंज़ूरी के कागज़ हैं !" चौकीदार परेशान सा होकर बोला ! "च… च…च… ! यह क्या कर आये ! अब इन्होने धक्के से यहाँ नदी के किनारे क्रेशर लगा देना है ! भेड़ -बकरियों की तरह लोगों से मंज़ूरी ले रहे हैं ! झूठ बोल कर ! इन्हीं पंचों-प्रधानों ने नदी गैर-कानूनी खनन वालों को दे रखी थी ! अब और कसर क्रेशर पूरी कर देगा----!" चौकीद...

दो हाथ

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"बेलदारी का काम करने की आदत है न ! खेतों का काम करके हाथों से खून चल पड़ता है ! मैं तो यहाँ परदेस में इसीलिए काम को आयी हूँ ताकि ध्यान बँट जाए ! घर पर तो बेटों की याद आती है ! मेरे दो बेटे मेरे सामने ख़त्म हो गए ! रो-रो कर मेरी आँखों का पानी सूख गया ! अब मेरे तीसरे बेटे  के घर बच्चा हुआ है.....  ६ साल बाद ! २ महीने का एडवांस दे दो, बीबीजी ! बदायूं जाना है अबकी बार ! " "पैसे का क्या करेगी ?" "५०० रुपये नाती ने मांगे हैं ! कुछ मर्द को चाहिए… दीवार पक्की करवाने को। बेटा भी मांग रहा था, सब सामान मथुरा छोड़ आया था ,अब दोबारा बर्तन वगेरह लेने हैं !" "अपने पास क्या बचेगा तेरे ? दवा-दारु को कुछ रखा है या नहीं?" "मेरे पास ये दो हाथ हैं, बीबीजी ! इनमें क्या बचाऊँ, क्या छिपाऊँ !" अपने झुर्राए हुए दरारों से सने हाथों को देखती हुई वो अपनी झुग्गी की ओर चल दी ! और मैं अपने हाथों की लकीरों में अब भी कुछ ढूँढ रही थी !

बकरी बनाम बहाना

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  "नदी किनारे वाली ज़मीन एक्वायर हुई थी तब मेरे नाम का ५० लाख का चेक आया था ! बहू-बेटे ने पैसा बैंक में जमा  करवा दिए और एक गाडी भी खरीद ली थी ! यहाँ कॉलोनी के लिए प्लाट काटने शुरू हो गये ! हमारे देखते-देखते लहलहाती हरियाली , बस्तियों में तब्दील हो गयी ! बकरी चराने को भी कोई ठौर ढूंढ़ना पड़ता है आजकल !" "ये बकरी क्यों चराती हो अब भी? अब तोह करोड़पति हो गये हो आप लोग ! बुढ़ापे में आराम किया करो न !" "बेटा ! ये बकरी नहीं, बहाना है ! बुढ़ापा तो उस दिन महसूस होगा, जब घर पर खाली बैठ जाउंगी ! इस बकरी के बहाने सैर कर लेती हूँ; गाँव भर में घूमना हो जाता है ! वरना आजकल कोई बिना मतलब कहाँ बाहर निकलता है ! सब अंदरोल बन गए हैं ! या तो टीवी के आगे या फोन पर....मिलना-मिलाना तो ब्याह-शादियों में भी २ मिनट का होता है अब तो ! किसी पोते-दोहते को कहूँगी कि सैर करवा ला तो उल्टा जवाब या बहाने ही सुनाएंगे ! इसीलिए मैं बकरी को चराने के साथ सैर भी कर लेती हूँ !  अपने गाँव की खबरें अब टीवी में थोड़े ही मिलती हैं ! खेतों में घास लेने आई बहुओं से उनके घर-परिवार का पूछ लेती हूँ ! स्कूल...

हाट

~ रिक्शा की किर्र-किर्र को तोड़ते हुए उसने रिक्शावाले से पूछा : " ऐ भाई ! यहाँ की हाट में क्या-क्या मिलता है?" रिक्शावाले ने अभ्यस्त स्वर में कहा : "यहाँ सब मिलता है, मेमसाहिब ! दुनियाभर का सामान ! किसी बड़े शेहेर से कम नहीं, ज़यादा ही वैरायटी है ! लोग दूर-दूर से आते हैं ! " उसे हंसी सी आगयी : "अच्छा? और ऐसा क्या है जो यहाँ  'नहीं' मिलता है? " रिक्शावाले ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और फिर अपनी धुन में बोल गया: "मेमसाहिब ! इन बाज़ारों, हाट और दुकानों में 'चैन' नहीं मिलता है ! फिर भी लोग क्या पता क्यों चले आते हैं !" ये सुनकर कुछ और पूछने को बचा कहाँ था ! कभी वो रस्ते को देख रही थी और कभी  रस्ते पर दौड़ती अपनी परछाईं को ! ~  

..अल्फ़ाज़ का पीछा करते..

हरियाली से घिरे इस घर में कोई 'लिखने' के सिवा और कर भी क्या सकता था ! मगर उसके अलफ़ाज़ को तो मानो कोई दीमक खा गयी थी ! रोज़ सुबह उठ कर किसी नए टॉपिक पर लिखने का सोचती या फिर कोई कहानी पढ़ने बैठती मगर ध्यान, अलफ़ाज़ से हाथ छुड़ा कर, किसी दूर की सोच के मैदानों में दौड़ने लगता ! 'Writer's Block' का बहाना करके अपने आप को समझा लेती मगर जब मन बना कर लैपटॉप पर कुछ लिखने लगती तो घंटों खाली स्क्रीन को देखती जाती ! आखिर क्या लिखे और किसके बारे में लिखे ! लोगों के बारे में क्या कहना है। कित्ना लिखना है। लोगों से दूर भागने को ही तो लिखती थी ! फिर क्यों लिखे उन्ही लोगों के बारे में ! उबकाई सी आती थी हर किस्से, हर कहानी पर ! अखबार भी बोरिंग से ही थे ! हर नोवेल कितना  प्रेडिक्टेबल ! ऐसा क्या था जो पहले कहा नहीं गया या लिखा नहीं गया ! और मार्केट में लेखकों की एक नयी खेप तैयार हो चुकी थी अब तक ! कौन इतना खाली है कि उसको पढ़ता ! पब्लिशर से भी कोई इनपुट नहीं था ! ६ महीने बीत गये थे ! '…कहानी को धक्का लगा कर कागज़ पर उतारने में थक गयी थी ! अब कहानी की ऊँगली पकड़ कर चलने का वक़्त था...कहानी क...