बक़ा : कुछ देर और

"काश ! सब रुक जाता। वक़्त, उम्र, जज़्बात। कुछ मोहलत और मिलती। बस, कुछ देर और।" वक़्त रेत की तरह हथेलियों से फिसलता है और दुनिया में सब फ़ना हुए जाता है। इंसान वक़्त की इसी बेरूख़ी के आगे बेबस है पर उसकी अना (अहम ) उसे हार मानने नहीं देती और वक़्त की ताक़त के आगे इंसान अपनी बक़ा की मज़बूत ख़्वाहिश खड़ी कर देता है। 'बक़ा' एक अरबी लफ्ज़ है जिसका मतलब है 'बाकी/बकाया रहना' यानी 'To Remain'/'Survival'. ख़त्म होते रिश्ते या हाथ से छूटती हुई ज़िन्दगी को जाते-जाते जो ताक़त और ज़ोर से जकड़ती है, इस कोशिश में कि कोई सिरा पकड़ कर कुछ दूर और चल लिया जाए, वही बक़ा की ख्वाहिश है। ज़िन्दगी की आखिरी दहलीज़ पर खड़े हुए जो तमाम लोग अपनी जीवनियाँ (Autobiographies) लिखते हैं, ताकि कोई उनके तजुर्बे पढ़ सके, उनके जाने के बाद भी, ये ही है बक़ा की ख्वाहिश। यह बक़ा की ख्वाहिश ही थी जिसके चलते तमाम राजा-शहनशाह बड़े-बड़े किले, इमारतें और ताज-महल जैसे स्मारक बनवा गए, ताकि उनका नाम अमर रह सके, दुनिया में बाकी रह सके ! बैचलर-पार्टीज़ में अक्सर होने वाले दूल्हे-दुल्हन को अपना दिल खोल कर आशि...