फूलन देवी : बंदूक से बुद्ध तक

फूलन देवी ने पहली बगावत की अपनी ज़मीन अपने ही शरीकों द्वारा हड़पे जाने के खिलाफ़। फूलन देवी की दूसरी बगावत थी अपने पति द्वारा किए जाने वाले मैरिटल रेप के विरुद्ध। फूलन देवी की अगली बगावत थी एक पिछड़ी जाति की महिला होने के बावजूद मिलीजुली जाति वाले बागियों के टोले में शामिल होने की। बेहमई कांड की जिम्मेदारी कभी साफतौर पर फूलन ने ली ही नहीं। फूलन ने आगे चलकर उग्र विरोध किया अपने नाम पर बनाई अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म बैंडिट क्वीन में परोसी गई मिथ्या का। 

फूलन को अगर आप बैंडिट क्वीन जैसे manipulative cinema से जानते हैं या दस्यु सुंदरियों को लेकर छपी पल्प-फिक्शन-नुमा रिपोर्टों से, तो दोबारा सोचिए! फूलन देवी का 'पॉलिटिकल कैपिटल' की तरह आज तक दोहन करने वालों ने उसे देवी, नायिका और दस्यु सुंदरी बताकर उसके किरदार और कहानी की जैसी लीपापोती की है, वह न सिर्फ़ फूलन की छवि के लिए बल्कि एक न्यायाभिलाषी समाज के लिए भी घातक है। 

प्रो दिलीप मण्डल 2017 में छपे अपने एक लेख में लिखते हैं कि फूलन देवी को ठाकुरों के मुकाबले खड़ा करने वाले दुष्ट लोग हैं। यहां जाति का कोई मामला ही नहीं है। वह एक औरत की पीड़ा है। उसका प्रतिशोध है। कोई ठाकुर औरत भी शायद यही करती। 

https://velivada.com/?s=%E0%A4%AB%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A4%A8+

अरुंधति रॉय अपने निबंध The Great Indian Rape-Trick में लिखती हैं कि If the issues involved are culpable criminal offenses such as Murder and Rape - if some of them are still pending in a court of law -- legally, is he (Shekhar Kapur dir.Bandit Queen) allowed to present conjecture, reasonable assumption and hearsay as the unalloyed "Truth?" 

http://arundhati-roy.blogspot.com/2004/11/great-indian-rape-trick-i.html?m=1

बंदूक से बुद्ध तक के सफ़र में फूलन देवी की जिस मीडिया पोषित pasteurized image को हम सब सराहते आए हैं, उसे दोबारा देखने की ज़रूरत है, सिनामेटिक गेज़ नहीं, Progressive Rhetoric के ज़रिए भी नहीं, बल्कि OBJECTIVE GAZE से।

Bandit Queen जैसे प्रोपेगेंडा सिनेमा ने फूलन देवी की छवि और कहानी के साथ जो अन्याय किया,  उसपर यह लेख पढ़ें : 

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