सूफ़ी फाइलें | अफ़ग़ानी सरज़मीं पर सूफ़ी निशानियाँ

 तालिबान ने पिछले दिनों अफगानिस्तान के 'हेरात' शहर पर कब्ज़ा कर लिया और पिछले कुछ दिनों में औरतों को लेकर कई सख़्त आदेश भी जारी किए हैं। तालिबान की वापसी के साथ अफगानिस्तान में औरतों के भविष्य पर एक सवालिया निशान लग गया है लेकिन इतिहास में इस इलाके की पहचान ही औरतों की बनाई इमारतों से रही है। 

तैमूर वंश के शासन के दौरान 'गौहर शाद' नाम की सम्राज्ञी ने सामाजिक नियमों के खिलाफ जाकर भी दो जुमा-मस्जिदों और मदरसे का निर्माण करवाया, जिनमें से एक, 'गौहर शाद मुसल्ला', हेरात शहर की पहचान रहा है। यह मुसल्ला परिसर उस समय की सामाजिक गतिविधियों का केंद्र रहा जहां बौद्धिकों का जमघट लगता, मुशायरे हुआ करते और कई करतब भी दिखाई जाते थे। यहां बनाई गई 20 मीनारों में से 5 ही बची हैं लेकिन उस समय एक संपन्न महिला द्वारा अपनी निजी संपत्ति से ऐसे भव्य निर्माण करवाना अद्भुत था। 

गौहर शाद ने खुरासान के मशहूर सूफी शायर 'अहमद-ए-जाम' के नाम भी कई रकबा ज़मीन की, ताकि सूफियों की संगत उनके शासन को मिली रहे। तैमूर की बेगम 'तुमन आका' ने भी कुसुविया नामक जगह पर एक खानकाह बनवाया। इसी तर्ज़ पर तैमूर के बेटे जहांगीर की बेगम 'खानजादा बेगम' ने भी हेरात में एक खानकाह बनवाया। 

राजसी परिवारों की औरतों का शाही संपत्ति में हक़दार होना और अपनी दौलत से दीन और समाज के लिए इमारतें बनवाना जहां पुराने अफगानिस्तान/खुरासान की पहचान रही, वहीं आज के अफगानिस्तान में औरतें चारदीवारी में कैद करवाई जा रहीं और दीन-दुनिया बेबस है।

Comments