सूफी फाइलें | तुरिया तुरिया जा फरीदा


"..ठ फरीदा सुत्तेया, दुनिया वेखन्न जा..
जे कोई मिल जाए बक्शेया, तू वी बक्शेया जा.."

'पंज-पीरों' और 'चार-यार' में से एक__सूफी पीर और शायर बाबा फरीद 'गंजशकर' का उर्स इस वक्त पाकपत्तन में उनकी मज़ार पर मनाया जा रहा है। कहते हैं बाबा फरीद पंजाबी भाषा के पहले शायर हुए और उनके लिखे 134 श्लोक/दोहे 'गुरु ग्रंथ साहिब' में भी शामिल किए गए। बाबा फरीद महरौली वाले ख्वाजा बख़्तियार काकी के मुरीद थे और उन्हीं की हिदायत पर बाबा फरीद ने 18 साल अलग-अलग जगहों का दौरा किया जैसे गज़नी, बगदाद, येरूशलम,सीरिया, मक्का और मदीना। बाबा फरीद से मुतासिर होकर पश्चिमी पंजाब के सियाल, खोखर, भट्टी और टिवाना जैसे कई जट्ट कबीलों ने इस्लाम भी कबूला। अपने जीते जी तो बाबा फरीद ने सियासतदानों से एक दूरी बनाए रखी लेकिन उनके उत्तराधिकारी 'दीवानों' ने दिल्ली सल्तनत और तुगलक शासकों के साथ गहरे ताल्लुक बनाए। बाबा फरीद की दरगाह पर तैमूर लंग से लेकर अकबर तक ने हाज़िरी दी। माना जाता है कि इनकी मज़ार पर मौजूद 'बहिश्ती दरवाज़े' से गुजरने वालों को जन्नत नसीब होती है मगर औरतों को इस दरवाजे से गुजरने की मनाही है। 90 के दशक में दरगाह आईं बेनज़ीर भुट्टो तक को इस दरवाज़े से नहीं गुजरने दिया गया था।

तस्वीर में देखें: मशहूर चित्रकार सोभा सिंह की कूची से बनाया गया बाबा फरीद का चित्र।

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