सूफ़ी फाइलें | गांधी की आख़िरी तीर्थयात्रा
महरौली की गलियों में बसी है ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी की दरगाह, एक ऐसे सूफी संत जिनके नाम पर क़ुतुब मीनार का नाम रखा गया और जिन्होंने मोईनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) के सिलसिले को आगे बढ़ाया।
महात्मा गांधी, जो अमूमन किसी मंदिर-मस्जिद में नहीं जाते थे, उन्होंने अपनी हत्या से महज़ तीन दिन पहले यानि 27 जनवरी 1948 को इस दरगाह में हाज़िरी दी थी। कहा जा सकता है कि क़ुतुब साहेब दरगाह की ज़ियारत उनकी ज़िन्दगी की आखिरी तीर्थयात्रा जैसी थी।
1947 के दंगों में बख़्तियार काकी की इस दरगाह को काफी नुकसान पहुंचाया गया था। जब गांधीजी ने सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ़ 1948 में आमरण अनशन शुरू किया तो उनकी 6 मांगों में से एक मांग थी कि प्रायश्चित के तौर पर हिन्दू और सिख, दंगों में तोड़ी गई बख़्तियार काकी की दरगाह की मरम्मत करवाएं..
..और गांधीजी की हत्या के बाद उनकी इच्छानुसार दरगाह की मरम्मत करवाई भी गई।
दंगों के बाद दरगाह में सालाना उर्स नहीं मनाया गया था, लेकिन गांधी की हाज़िरी के बाद उर्स मनाया भी गया और सिख भाइयों ने उसी सूफ़ी बरामदे में कव्वाली गाकर उसी धार्मिक समरसता को बहाल किया, जिसकी अपील गांधीजी ने की थी।
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