La La Land: भावना और संभावना
'ऐसा होता तो कैसा होता। कुछ वैसा किया होता तो शायद कुछ और होता।'
दो लोग मिलते हैं। करियर और निजी जिंदगी के संघर्ष से जूझते हुए, झल्लाए हुए, एक दूसरे की उलझनें सुलझाने के बहाने अपनी परेशानी भूलने की कोशिश करते हैं। एक दूसरे के सपनों के बीज अपने हाथों से एक क्यारी में बोते हैं, पानी देकर सींचते हैं और एक साथ नई संभावनाएं तलाशते हैं। मगर जब दोनों के सपने जड़ पकड़ते हैं, बढ़ने लगते हैं और एक क्यारी में फिट नहीं हो पाते तो कैसे दोनों के ख्वाब अलग-अलग रुख में मुड़ जाते हैं। होने को दोनों में से किसी एक के सपनों की प्रूनिंग कर दूसरे के लिए जगह बनाई जा सकती थी, या कोई एक बेल या बोनसाई बनकर दूसरे की छाँव में पनप सकता था मगर यहाँ कहानी दो साँझे सपनों के आजाद विकास की है। यहाँ एक दूसरे से पृथक होकर रिश्ते के दर्दमंद वजूद को ढोने की बात नहीं कही गई बल्कि अलग-अलग रहकर एक दूसरे के सपनों को लहलहाते देख मुस्कुराने की हिम्मती कहानी गढ़ी गई है। टैगोर के 'bond of separation' वाला परिपक्व प्रेम और शमशेर के 'मछलियाँ लहरों से करती हैं ' वाला निस्वार्थ प्रेम, दोनों ही रूप इस कहानी के अंत में छलक आते हैं। प्यार और सपनों में भावनाएँ और सम्भावनाएँ, सचमुच असीम, अनहद होती हैं।
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