मेडलों वाला बाबा
जनवरी महीना और धुंद में लिपटी गली में कुछ नज़र नहीं आता था...तभी उस टूटे हुए लकड़ी के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी...माँ ने पूछा,"कौन है ?" दूसरी तरफ से किसी के खांसने की आवाज़ आई... माँ ने दरवाज़े के बीच बनी हुई दरार से झाँक के देखा तो अनजाना सा चेहरा दिखाई दिया...दरवाज़ा खोला तोह देखा एक अधेड़ उम्र का शख्स, सफ़ेद बाल, लम्बी दाढ़ी....लाल आँखें घूरती हुई और फौजी युनिफोर्म में खड़ा है..हाथ में एक बैग उठाये..और उसकी युनिफोर्म पर लदे थे कोई ३ किलो मेडल...
मैं सुबह सुबह आँखें मलती हुई बाहर आई..देखा के पापा उस शख्स को गले लगा रहे हैं..जैसे बरसों कि पहचान हो..मैं उसके भेष से घबरा कर दोबारा अन्दर चली गयी और परदे के पीछे से उसे देखने लगी...उसके चलने के साथ साथ उसके मेडलों की खनक बिखर रही थी...ऊपर से वो डरावनी आँखों से चारों तरफ देखता..जैसे किसी सुराग की तलाश करता हो..ऐसा लगता था मानो वो कई दिनों से नहाया न हो... पापा जैसे ही रसोई में चाय लेने आये..मैंने झट से बहार निकल कर पूछा,"पापा ! कौन है यह आदमी?" पापा ने बताया के यह शख्स उनके गाँव से है..दूर का रिश्तेदार...किसी ज़माने में फ़ौज में था..कोई नहीं जानता के यह मेडल उसने जीते हैं..या कहीं से इकट्ठे किये हैं शौकिया तौर पर..लेकिन..इन मेडलों में उसकी जान बस्ती है,,,जहाँ भी जाता है..इन्हें सीने से लगाये घूमता है...सोते वक़्त भी अपने तकिये के नीचे अपना कोट फोल्ड कर के रखता है ताकि कोई इसके मेडलों को हाथ न लगा दे...यह इसी वजह से "मेडलों वाला बाबा" के नाम से अपने इलाके में मशहूर हैं.. उसकी कहानी और रहस्यमंयी हुलिया देख कर उसके पास जाके बात करने का बड़ा मन हुआ..लेकिन स्कूल के लिए लेट हो रही थी..सो तयार होने चली गयी..लेकिन पूरे दिन दिमाग में वही "मेडलों वाला बाबा" घूमता रहा...घर आते ही मैं उसे देखने की उम्मीद में ड्राइंग -रूम की तरफ भागी.. लेकिन वो जा चुका था...मेरे आने से पहले ही ... माँ ने बताया के उसे सिविल हस्पताल में चेकअप करवाने जाना था...इसलिए पापा को साथ लेजाने आया था..उसके घर वाले इतना ध्यान नहीं देते...उसकी उम्र और हालत पर तरस सा आया.. लेकिन फिर अपने होमेवोर्क और रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी के कामों में खो कर उस "मेडलों वाले बाबा" की याद खो सी गयी...
बड़े सालों बाद हमें खबर आई कि "मेडलों वाला बाबा" नहीं रहा..किसी की बारात में पास के गाँव में गया था..वहां कुछ शरारती लड़कों ने उसे सताने के लिए उसका मेडलों वाला कोट छुपा दिया ..वो काफी देर तक कोट ढूँढता रहा लेकिन उसे मिला नहीं...गुस्से में उसने सबको बहोत गालियाँ दी और घर आगया...अगले दिन अपने बिस्तर में बेजान मिला...डॉक्टर ने बताया कि heart attack के कारण मौत हुई है...यह सब सुनके बड़ा अफ़सोस हुआ...ज़हन के किसी कोने में दबी पड़ी उसकी याद फिर हरी हो गयी..
न जाने क्यूँ होगा उसे अपने मेडलों वाले कोट से इतना मोह ? क्या यह सब मेडल उसने अपनी बहादुरी के लिए जीते होंगे या इधर उधर से इकट्ठे किए होंगे ? किनसे इक्कट्ठे किए होंगे ? कितने ही लोगों से मिला होगा वोह..न जाने कौन कौन सी जंग देखी होगी उसकी बूढी आँखों ने ! बड़े सालों बाद हम भी उसी गाँव में जा बसे जहाँ का वो "मेडलों वाला बाबा" था...अपनी अलमारी साफ़ करते हुए प्रथम विश्व युद्ध का एक पुराना मेडल हाथ लगा...उसी "मेडलों वाले बाबा" की सूरत याद आगयी... हमने आँगन में पेड़ के साथ घंटियाँ टांग दी हैं..जब भी हवा चलती है..उनकी खनक से सारा माहौल गूँज उठता है..मैं आँखें बंद करती हूँ और महसूस होता है..जैसे ये घंटियों की नहीं.."मेडलों वाले बाबा" के मेडलों की खनक है..और वो अब भी हमारे इर्द -गिर्द ही घूम रहा हैं...सुराग ढूँढ़ते हुए..अपने खोये हुए मेडलों वाले कोट का.....
मैं सुबह सुबह आँखें मलती हुई बाहर आई..देखा के पापा उस शख्स को गले लगा रहे हैं..जैसे बरसों कि पहचान हो..मैं उसके भेष से घबरा कर दोबारा अन्दर चली गयी और परदे के पीछे से उसे देखने लगी...उसके चलने के साथ साथ उसके मेडलों की खनक बिखर रही थी...ऊपर से वो डरावनी आँखों से चारों तरफ देखता..जैसे किसी सुराग की तलाश करता हो..ऐसा लगता था मानो वो कई दिनों से नहाया न हो... पापा जैसे ही रसोई में चाय लेने आये..मैंने झट से बहार निकल कर पूछा,"पापा ! कौन है यह आदमी?" पापा ने बताया के यह शख्स उनके गाँव से है..दूर का रिश्तेदार...किसी ज़माने में फ़ौज में था..कोई नहीं जानता के यह मेडल उसने जीते हैं..या कहीं से इकट्ठे किये हैं शौकिया तौर पर..लेकिन..इन मेडलों में उसकी जान बस्ती है,,,जहाँ भी जाता है..इन्हें सीने से लगाये घूमता है...सोते वक़्त भी अपने तकिये के नीचे अपना कोट फोल्ड कर के रखता है ताकि कोई इसके मेडलों को हाथ न लगा दे...यह इसी वजह से "मेडलों वाला बाबा" के नाम से अपने इलाके में मशहूर हैं.. उसकी कहानी और रहस्यमंयी हुलिया देख कर उसके पास जाके बात करने का बड़ा मन हुआ..लेकिन स्कूल के लिए लेट हो रही थी..सो तयार होने चली गयी..लेकिन पूरे दिन दिमाग में वही "मेडलों वाला बाबा" घूमता रहा...घर आते ही मैं उसे देखने की उम्मीद में ड्राइंग -रूम की तरफ भागी.. लेकिन वो जा चुका था...मेरे आने से पहले ही ... माँ ने बताया के उसे सिविल हस्पताल में चेकअप करवाने जाना था...इसलिए पापा को साथ लेजाने आया था..उसके घर वाले इतना ध्यान नहीं देते...उसकी उम्र और हालत पर तरस सा आया.. लेकिन फिर अपने होमेवोर्क और रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी के कामों में खो कर उस "मेडलों वाले बाबा" की याद खो सी गयी...
बड़े सालों बाद हमें खबर आई कि "मेडलों वाला बाबा" नहीं रहा..किसी की बारात में पास के गाँव में गया था..वहां कुछ शरारती लड़कों ने उसे सताने के लिए उसका मेडलों वाला कोट छुपा दिया ..वो काफी देर तक कोट ढूँढता रहा लेकिन उसे मिला नहीं...गुस्से में उसने सबको बहोत गालियाँ दी और घर आगया...अगले दिन अपने बिस्तर में बेजान मिला...डॉक्टर ने बताया कि heart attack के कारण मौत हुई है...यह सब सुनके बड़ा अफ़सोस हुआ...ज़हन के किसी कोने में दबी पड़ी उसकी याद फिर हरी हो गयी..
न जाने क्यूँ होगा उसे अपने मेडलों वाले कोट से इतना मोह ? क्या यह सब मेडल उसने अपनी बहादुरी के लिए जीते होंगे या इधर उधर से इकट्ठे किए होंगे ? किनसे इक्कट्ठे किए होंगे ? कितने ही लोगों से मिला होगा वोह..न जाने कौन कौन सी जंग देखी होगी उसकी बूढी आँखों ने ! बड़े सालों बाद हम भी उसी गाँव में जा बसे जहाँ का वो "मेडलों वाला बाबा" था...अपनी अलमारी साफ़ करते हुए प्रथम विश्व युद्ध का एक पुराना मेडल हाथ लगा...उसी "मेडलों वाले बाबा" की सूरत याद आगयी... हमने आँगन में पेड़ के साथ घंटियाँ टांग दी हैं..जब भी हवा चलती है..उनकी खनक से सारा माहौल गूँज उठता है..मैं आँखें बंद करती हूँ और महसूस होता है..जैसे ये घंटियों की नहीं.."मेडलों वाले बाबा" के मेडलों की खनक है..और वो अब भी हमारे इर्द -गिर्द ही घूम रहा हैं...सुराग ढूँढ़ते हुए..अपने खोये हुए मेडलों वाले कोट का.....
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