बुल्डोजर न्याय 'हाय-हाय' तो ट्रैक्टर भीड़तंत्र 'अमर-रहे' क्यों?
पिछले कुछ समय से बुल्डोजर या JCB मशीन का बढ़ा-चढ़ाकर राजनीतीकरण किया जा रहा है। हालही में सुप्रीम कोर्ट की मदालख्त के बाद रवीश कुमार ने एक प्राइमटाइम किया, 'न्यायमूर्ति बुलडोजर' नाम से। अनहद और United Christian Forum के एक आगामी कार्यक्रम में भी एक सेशन रखा गया है: Bulldozer Raj. पीछे प्रलेस द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भी सेशन रखा गया था, "क्या-क्या तोड़ता है बुल्डोजर".. The Wire ने एक लेख भी छापा 'The Bulldozer Is the Latest Symbol of Toxic Masculinity to Create Havoc in the Populace'. BBC ने भी एक लेख छापा How bulldozers became a vehicle of injustice in India. जमा हासिल यही है बुल्डोजर के राजनीतीकरण और विध्वंसक इस्तेमाल से इसकी छवि 'फौजी टैंक' वाली बनाई जा रही है, जो सिर्फ़ तोड़फोड़ और दहशत का सबब हो।
लेकिन बतौर एक आम नागरिक, मैं जेसीबी (बुलडोजर) की इस 𝗧𝘆𝗽𝗲𝗰𝗮𝘀𝘁𝗶𝗻𝗴 के सख्त खिलाफ हूं। देश में नैनो (पश्चिम बंगाल) और मारुति (संजय गांधी) को तो राजनैतिक औजार की तरह इस्तेमाल किया ही गया है लेकिन अब जेसीबी जैसी एक उपयोगी मशीन को अपने राजनैतिक एजेंडा के चलते लेफ्ट/राइट/सेंटर तीनों खेमों द्वारा 'नायक' या 'खलनायक' बनाया जा रहा है!
धरातल पर उतर कर देखेंगे तो पाएंगे कि कुछ सालों में सबसे उपयोगी बनकर जो मशीन उभरी है वो है 'जेसीबी' या बुलडोजर..! इससे हाईवे बन रहे हैं, खुदाई हो रही है, पशु गड्ढों से निकाले जा रहे हैं, मलवा हटाया जा रहा है। कितने ही बेरोजगार युवकों ने जेसीबी खरीदकर कमाई का साधन जुटा लिया है।
हालांकि यह दिलचस्प है कि बुलडोजर के खिलाफ़ मोर्चे पर डटे हमारे कॉमरेड 'ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के राजनीतीकरण' से जानबूझकर अंजान बने हुए हैं। जैसा दक्षिणपंथ के लिए सांकेतिक हथियार बुलडोजर है वैसा ही सांकेतिक हथियार ट्रैक्टर है सेंट्रिस्ट & वामियों के लिए। जब राज्यों के बॉर्डर 'ट्रैक्टर मार्च' द्वारा जाम कर दिए जाते हैं, कथित किसान लीडर ट्रैक्टरों से पूरी दिल्ली पर चढ़ाई करने की धमकी देते हैं, इंडिया गेट पर प्रदर्शन की आड़ में ट्रैक्टर को आग लगाते हैं, और नवनिर्वाचित सांसद ट्रैक्टर समेत संसद में जबरन घुसते हैं, तब किसी आर्मचेयर बुद्धिजीवी को 𝗧𝗿𝗮𝗰𝘁𝗼𝗿 𝗠𝗼𝗯𝗼𝗰𝗿𝗮𝗰𝘆 जैसे जुमले क्यों नहीं सूझते?
कांग्रेस ने जब सिद्धू मूसेवाला को टिकट दिया था तब एक इंटरव्यू में गन कल्चर पर बोलते हुए मूसेवाला कहते हैं,"किसी भी हथियार को क्यों बुरा कहना। वो हथियार जिस हाथ में है, उसके पीछे का दिमाग अच्छा या बुरा हो सकता है।" बात सही भी है, जो कुदाल और हँसिया एक मज़दूर के हाथ में बतौर औजार है, वही किसी बददिमाग के हाथ में आकर (सियासी!) हथियार भी बन सकता है।
अगर तर्कशील नज़र से देखें तो दक्षिणपंथ के रिमोट से चलता बुलडोजर अगर 𝗪𝗲𝗮𝗽𝗼𝗻 𝗼𝗳 𝗠𝗮𝘀𝘀 𝗗𝗲𝘀𝘁𝗿𝘂𝗰𝘁𝗶𝗼𝗻 है तो वामपंथ/नवउदारवाद के हथियार के तौर पर Tractor भी आज 𝗪𝗲𝗮𝗽𝗼𝗻 𝗼𝗳 𝗖𝗿𝗶𝗺𝗶𝗻𝗮𝗹 𝗣𝗿𝗼𝘃𝗼𝗰𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 है।
लेकिन बुलडोजर न्याय की आलोचना करना मगर 𝗧𝗿𝗮𝗰𝘁𝗼𝗿 𝗠𝗼𝗯𝗼𝗰𝗿𝗮𝗰𝘆 पर चुप्पी साधे रखने को ही शायद Orwellian भाषा में कहेंगे: "𝘼𝙡𝙡 𝙢𝙖𝙘𝙝𝙞𝙣𝙚𝙨 𝙖𝙧𝙚 𝙚𝙦𝙪𝙖𝙡, 𝙗𝙪𝙩 𝙨𝙤𝙢𝙚 𝙢𝙖𝙘𝙝𝙞𝙣𝙚𝙨 𝙖𝙧𝙚 𝙢𝙤𝙧𝙚 𝙚𝙦𝙪𝙖𝙡 𝙩𝙝𝙖𝙣 𝙤𝙩𝙝𝙚𝙧𝙨."
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