श्री क्षत्रिय युवक संघ: क्षात्र धर्म के ध्वजवाहक से समाज के सवाल


अपनी विचाराधारा, संगठन-शक्ति और जन प्रभाव के चलते श्री क्षत्रिय युवक संघ किसी परिचय का मोहताज नहीं है। मुख्यतः राजस्थान और गुजरात राज्यों में इस संगठन का आम क्षत्रीय जनमानस के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव भी रहा है, जिसके पीछे क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक पूज्य तनसिंहजी और अनेकों स्वयंसेवकों के वर्षों के अथक प्रयास का योगदान रहा है। इस संगठन की स्थापना और मूल्यों का बखान करते कई आलेख आपको मिलेंगे। लेकिन हालही में श्री क्षत्रीय युवक संघ के चर्चा में रहने के कारणों को टटोलते हुए हम मुड़ेंगे कुछ वर्ष पीछे। 

सन 2021 के दिसंबर में श्री क्षत्रिय युवक संघ के 75 वर्ष पूर्ण होने पर जयपुर में हीरक जयंती समारोह आयोजित हुआ जिसमें देश और प्रदेशभर से बड़ी संख्या में राजपूत समाज के लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इस हीरक जयंती समारोह की भव्यता और विशालकाय क्षत्रीय जनसैलाब ने गुलाबी नगरी को केसरिया रंग दिया। इस सामाजिक समारोह में सभी दलों और विचारधाराओं के अग्रणियों ने शिरकत की। इस सफल आयोजन के बाद मीडिया में हेडलाइन चली : 'आखिर क्या था इस सम्मेलन का उद्देश्य?' और 'राजस्थान में राजपूतों का बिना किसी एजेंडे के भीड़ जुटाने का मतलब'..। 3 लाख से अधिक राजपूतों के एक संगठन के झंडे तले जुटान से राजनैतिक और सामाजिक अटकलें तेज़ हुईं और इस समारोह के अलग अलग अर्थ निकाले जाने लगे। 

इस वर्ष 2024 में श्री तनसिंह जी जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन नई दिल्ली में किया जा रहा है और 2021 की ही तर्ज़ पर यह सवाल सोशल मीडिया पर बार बार घुमड़ रहा है कि देश की राजधानी में क्षत्रियों के इतने बड़े समागम का आखिर क्या उद्देश्य है? 

क्षत्रियों की भीड़ जुटाने का उद्देश्य

लोकतंत्र में संख्याबल ही शक्ति का द्योतक है। श्री क्षत्रिय युवक संघ ने 2021 और अब 2024 में शक्ति प्रदर्शन कर मुख्यत: दो संदेश दिए। पहला संदेश यह कि राजपूत समुदाय में संघ की लोकप्रियता आज भी बदस्तूर कायम है और दूसरा संदेश राजनीतिक दलों को दिया गया कि राजपूत समुदाय में क़ौमी एकता मौजूद है और एक झंडे के तले उन्हें साथ लाया जा सकता है।

गौरतलब है कि अलग अलग जाति समूहों की जाति संसदों और सम्मेलनों में जहां सार्वजनिक मंच से सामाजिक राजनैतिक मांगें रखी जाती हैं, वहीं श्री क्षत्रिय युवक संघ दूरगामी प्रभाव में विश्वास रखता है और क्षणिक मांगों और छोटे उद्देश्यों से ऊपर उठकर बड़े लक्ष्य की ओर केंद्रित रहता है। इन उद्देश्यों में से एक यह भी है कि ऐसे आयोजनों से समाज में क्षत्रीय की छवि सुधारी जाए। 

श्री क्षत्रिय युवक संघ के स्वयंसेवक महेंद्र सिंह तारातरा का कहना है, "राजपूत कौम सदैव अनुशासित रही है, दुनिया उसे ऐसे ही देखना पसंद करती है। सधा हुआ राजपूत, न्यायप्रिय राजपूतजिसके चलने से वातावरण भयमुक्त हो, वैसा राजपूत। ऐसे राजपूत के लिए संसार आज भी पलक पावड़े बिछाकर तैयार खड़ा है। हम कितने बन पाते हैं, यह हम पर है।" पंक्तिबद्ध बाइक रैली हो या जयपुर का हीरक जयंती समारोह, संघ के झंडे तले जमा हुए इन क्षत्रियों के अनुशासन ने समाज में एक उम्दा मिसाल खड़ी की है। 2024 में होने जा रहे जनशताब्दी समारोह में भी संघ का यही इसरार है कि हमारा एकत्र होना किसी को भयभीत या तंग करने के लिए नहीं बल्कि आश्वस्त करने के लिए है। ऐसे आदर्श क्षत्रीय समाज को दुनिया देखे, इन समागमों की यही मुख्य भूमिका रही है। 

• संघ, संस्कार और सामाजिक सरोकार •

क्षत्रीय युवाओं में सोशल मीडिया के मार्फ़त जागे जातिबोध और बौद्धिक चेतना का एक यह भी परिणाम है कि सब अलग अलग सामाजिक राजनैतिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाने लगे हैं और अपनी नाराज़गी या समर्थन खुलकर सामने रखने लगे हैं। श्री क्षत्रिय युवक संघ को लेकर अकसर यह सवाल बार-बार दागा जाता है कि क्या श्री क्षत्रिय युवक संघ युवाओं को सिर्फ ऐसा साधक बनाता है जो व्यावहारिकता से पृथक रहकर सिर्फ़ त्याग और चरित्र निर्माण पर केंद्रित रहे? 

इसपर संघ का स्पष्ट मत यह है कि उनका मुख्य कार्य राजपूत युवाओं को क्षत्रिय केे गुणों का प्रशिक्षण देना है जिसके लिए चुना गया मार्ग है 'सामूहिक संस्कारमयी मनोवैज्ञानिक कर्मप्रणाली'। परंपरा और संस्कार का समावेश कर युवाओं को क्षात्र धर्म में दीक्षित करना जिस सामाजिक संगठन का उद्देश्य हो, वह दूरगामी परिणामों पर केंद्रित रहता है। यह संस्कार निर्माण कोई पंचवर्षीय योजना नहीं है, इसीलिए समाज चरित्र की गहरी समझ विकसित करना और अनुशासन व सामूहिकता में रहते हुए कौम के हित में काम करना एक ऐसी धैर्यशील प्रक्रिया है, जिसे साधक बनकर ही अंजाम दिया जा सकता है। संघ स्वयंसेवकों में आध्यात्मिक प्रवृति के प्रति रुझान को सकारात्मक नज़र से देखना चाहिए क्योंकि इनके तप, त्याग और शील स्वभाव से क्षत्रियों की एक विरल छवि उभरती है, जो आक्रामक न होते हुए विनम्र है; जो जयकारे ना लगाकर सहगीत गाता है; जो श्रेष्ठताबोध से तना हुआ ना होकर समाजहित के लिए नतमस्तक है। जो अपने हित की ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र के कल्याण की बात सोचता है। संघ की विचारधारा और कार्यशैली एक आम राजपूत को सिखाती है कि हमें नींव पत्थर बनना है, कंगूरे नहीं। 

• संघ और व्यक्ति पूजा • 

समाज के युवाओं को संस्कार देने के उद्देश्य से पूज्य तनसिंह जी ने क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की जो उनके देह छोड़ने के 45 वर्ष बाद भी एक सक्रिय संस्था के तौर पर काम कर रही है। वे बाड़मेर नगर पालिका के पहले अध्यक्ष रहे, फिर 1952 के आमचुनावों में मात्र 28 वर्ष की आयु में बाड़मेर से राजस्थान की प्रथम विधानसभा के लिए विधायक चुने गए। उस विधानसभा में कुछ समय के लिए संयुक्त विपक्ष के नेता भी रहे। 1957 में पुनः विधायक चुने गए। 1962 में बाड़मेर-जैसलमेर जैसे संसार के सबसे बडे़ निर्वाचन क्षेत्र से मात्र 9000 रु. खर्च कर सांसद निर्वाचित हुए। 1967 का चुनाव हार गए तब स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ किया एवं साथ ही अपने अनेक साथियों को रोजगार उपलब्ध करवाया। 1977 में पुनः सांसद चुने गए एवं 1979 की 7 दिसंबर को आपकी लौकिक देह का देहावसान हो गया। 
सीमित साधनों और कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए तनसिंह जी जैसे व्यक्तित्व का आगे बढ़ना और अपने समाज के हितों के लिए श्री क्षत्रिय युवक संघ जैसे संगठन की स्थापना करना उनके जुझारूपन और दायित्वबोध का परिचय देता है। 

पूज्य तनसिंहजी के नाम से और ताब से आज भी श्री क्षत्रिय युवक संघ के स्वयंसेवकों पर फूल बरसते हैं, इस संगठन की इज़्ज़त घर-घर और सुदूर गांव-ढाणी तक है। ऐसे में कुछ लोग यह आपत्ति जताते हैं कि श्री क्षत्रिय युवक संघ आज मात्र व्यक्ति-पूजा तक क्यों सिमट गया है। 
इसका जवाब ढूंढने दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। संघ की स्थापना से लेकर इसकी कार्यप्रणाली और फलसफा विकसित करने में तनसिंह जी की अग्रणी भूमिका रही है। आज अगर वे अपने कार्यों के चलते cult figure बन गए हैं, तो यह स्वाभाविक भी है। महात्मा बुद्ध, बाबा साहेब अंबेडकर, रबीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द, मीरा बाई, महाराणा प्रताप जैसे कितने ही महानुभाव हुए, जिनकी न सिर्फ़ उपलब्धियों को याद किया जाता है बल्कि जिनके जीवन से प्रेरणा लेने के लिए उनके शहर, घर और सामान तक को मंदिर की तरह पूजा जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर की कलकत्ता स्थित जन्मस्थली जोरासंको में दर्शनार्थी एक मंदिर की तरह अपने जूते चप्पल उतार कर जाते हैं। मीरा बाई के मेड़ता स्थित मंदिर में भी उन्हें एक cult figure की तरह पूजा जाता है। साबरमती आश्रम में गांधी के अनुयायी उन्हें एक महात्मा की तरह याद करने आते हैं। अंबेडकर के घर को संग्रहाय बनाया गया है जिसमें उनके स्टडी टेबल और चश्मे आदि को संजोकर रखा गया है। महापुरुषों के प्रेरणादयी जीवन को मुड़कर देखना, उसका अनुसरण करना और उन्हें मूर्त रूप देकर पूजना तक हमारे संस्कारों में सम्मान देने का एक सामान्य तरीका है। ऐसे में पूज्य तनसिंहजी के मूल्यों और उनकी विचारधारा का अनुसरण करना भी कोई अपवाद नहीं है। ऐसे में उनका लाखों लोगों के लिए cult figure हो जाना भी स्वाभाविक है; जबकि उन्होंने खुद सिर्फ़ समाज हित के लिए चिंतन पर ज़ोर दिया, निज से निर्लिप्त रहते हुए। हालांकि तनसिंहजी का दिया हुआ मूलमंत्र आज भी यह कहता है : "हम समाज के सेवक हैं, शिक्षक नहीं।"

• पुरुष-प्रधान संगठन पर सवाल •

प्रथम दृष्टया ऐसा भान होता है कि श्री क्षत्रिय युवक संघ जैसा संगठन केवल युवकों/पुरुषों को केंद्र में रखकर बनाया गया होगा। नाम, संगठन और मीडिया में भी पुरुषों का बोलबाला अधिक होने से इस संस्था में महिलाओं की मौजूदगी और आवाज़ नदारद ही लगती है। जबकि पूज्य तनसिंहजी की दूरदर्शिता और रोशनख्याली का ही परिणाम है कि संघ में महिलाओं को भी उतनी ही तरजीह देने का काम किया गया, जितना पुरुषों को।

 
गौरतलब है कि संघ में अलग से महिला विभाग कार्यरत है जो महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए भी संघ के प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है। पूरे परिवार के लिए पारिवारिक शिविर एवं दंपति शिविर भी आयोजित होते हैं। इन सब में बालिकाओं एवं महिलाओं में आदर्श क्षत्राणी बनने के लिए अपेक्षित विशेषताओं का अभ्यास करवाया जाता है। 
संघ में बालिका शिविर अप्रेल 1995 से शुरु हुए। पहला बालिका शिविर 14 अप्रेल से 17 अप्रेल 1995 तक धन्धुका (गुजरात) में हुआ। राजस्थान में पहला बालिका शिविर 4 जून से 7 जून 1995 तक ’संघशक्ति’ जयपुर में हुआ। इसके अलावा संघ से जुड़े लोगों में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ़ लड़ने की अलख भी जगाई गई जिसके परिणामस्वरूप दहेज, शराब, बाल विवाह, छुआछूत जैसी कुरीतियों को त्याग क्षत्रीय समाज आज आगे बढ़ने के प्रयास कर रहा है। 

• संघ और राजनैतिक अस्पष्टता •

आज युवाओं की श्री क्षत्रिय युवक संघ से यह शिकायत रहती है कि राजनैतिक रूप से संघ अपना मत ज़ाहिर नहीं करता और अपने काडर और संगठन की ऊर्जा से राजनैतिक हित साधने में सक्रियता नहीं दिखाता। राजनैतिक पक्ष पर नरमपंथी होने का आक्षेप भी श्री क्षत्रिय युवक संघ पर लगाया जाता है और ऐसी सुगबुगाहट भी सुनने को मिलती है कि परोक्ष रूप से एक वैचारिक गर्भनाल संघ और आरएसएस को जोड़े हुए है। 

संघ की राजनैतिक संबंधन पर स्पष्ट राय यही रही है कि संघ प्रत्यक्ष रुप से राजनीति में भाग नहीं लेता लेकिन संघ के संपर्क वाले श्रेष्ठ लोग राजनीति में सक्रिय हों ऐसी सदिच्छा से व्यक्तिगत स्तर पर श्रेष्ठ लोगों का सहयोग करने का निर्देश अपने स्वयंसेवकों को देता है। संघ किसी राजनीतिक दल के सापेक्ष नहीं है बल्कि समाज सापेक्ष है। इसलिए समाज के लिए श्रेष्ठ करने वाले हर व्यक्ति का समर्थन करता है, चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल में हो। संघ की दृढ़ मान्यता यह भी है कि वह संपूर्ण समाज के लिए कोई निर्देश जारी करने के लिए अधिकृत नहीं हैं, इसीलिए कभी किसी पार्टी विशेष के लिए समाज में प्रचार प्रसार या निर्देश जारी नहीं करता जैसे अन्य सामाजिक संगठनों के मठाधीश करते पाए जाते हैं। 

जहां तक रही आरएसएस से जुड़ाव की बात तो यह सर्वविदित है कि संघ संस्थापक पूज्य तनसिंहजी का अपने नागपुर वास के दौरान अल्प जुड़ाव आरएसएस से हुआ, जिसकी कार्यशैली की कुछ छाप उन्होंने अपने संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ में भी अपनाई। क्षत्रिययुवक संघ की कार्यशैली में आरएसएस की तरह ही शाखाएं और शिविर लगते हैं, Regimentation मिलता है। आईटीसी और ओटीसी प्रशिक्षण भी होते हैं। संस्कार और समाज हित की चर्चा होती है। 

मगर देखा जाए तो संघ को आप आर्य समाज और गांधीवादी विचारों के आसपास ज़्यादा पाते हैं। लोकतांत्रिक तरीके से काम करना, पत्राचार के माध्यम से सामाजिक सरोकारों को अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करना और आडंबरों और सांप्रदायिकता से दूरी बनाए रखना ऐसे लक्षण हैं, जो संघ को आरएसएस जैसे संगठन से पृथक बनाते हैं। 

प्रत्यक्ष तौर पर भी संघ से दीक्षित युवाओं ने अपना राजनैतिक झुकाव स्वयं निर्धारित किया है, जिसके चलते कई पूर्व स्वयंसेवी अलग अलग दलों का हिस्सा बने हैं। तो जाहिर है कि संघ का जुड़ाव या झुकाव किसी राजनैतिक दल विशेष की तरफ नहीं रहा है। 

• उपसंहार •

आज क्षत्रीय युवक संघ जब देश की राजधानी दिल्ली में पूज्य तनसिंह जी का जन्म शताब्दी समारोह मनाने जा रही है, ऐसे में गांव कूचे और सुदूर राज्यों से इस महाकुंभ में जुड़ने के लिए पधार रही जनता का उत्साह इस बात का प्रमाण देता है कि संघ ने अपनी कार्यशैली से समाज में ऐसा विशिष्ट स्थान अर्जित किया है, जिसके एक आह्वान पर केसरिया सैलाब राजधानी तक उमड़ सकता है
एक सामाजिक संगठन की इस जनशक्ति को देश दुनिया बड़ी उम्मीदों से देख रही है और सीधे रास्ते पर चलते हुए यह संगठन क्षात्र धर्म की मशाल थामे सही दिशा में चल रहा है। संवाद और सेवा से इस संगठन को सींचने का काम अब युवाओं के ही जिम्मे है। 

Comments

  1. Intresting

    जय संघ शक्ति

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  2. जय राजपुताना 🚩

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  3. जय संघ शक्ति। सुंदर आलेख ।

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  4. जय संघ शक्ति

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    1. Hukum ma uttarpradesh meerut ka nivasi hu ma kshtriya yuva sangh sa kasa jud sakta hu

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  5. જય માતાજી

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  6. ANAND SINGH CHAUHAN22 December 2024 at 20:43

    Jai Bhawani
    sabse jyada thakur UP me rehte hai ,vaha kyu nahi jate

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