अल्लामा इक़बाल: परिंदों की दुनिया का दरवेश

'अल्लामा इक़बाल'- एक ऐसा किरदार जिसने ' सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा ' जैसा नगमा लिख वतन-परस्ती से सफर शुरू किया, दर्शनशास्त्र की परतें टटोली और आखिरी मकाम में अध्यात्म की राह पर चलते हुए कर्मयोग का संदेश दिया। अल्लामा इकबाल ने अपनी शायरी में ' शाहीन ' (Falcon) और ' खुदी ' (Dynamic Self) जैसे प्रतीकों को इस्तेमाल कर गूढ़ फलसफे रचे। "बयाबां की खलवत खुश आती है मुझको, अज़ल से है फितरत मेरी रहबाना.. परिंदों की दुनिया का दरवेश हूं मैं, कि शाहीं बनाता नहीं आशियाना.." "The solitude of the wilderness pleases me, By nature I was always a hermit.. I am the dervish of the kingdom of birds, The eagle does not make nests." अल्लामा इक़बाल के सूफीवाद पर किए गए काम को खंगाल कर देखने पर भी 'फकीरी' की नई परतें खुलती हैं। बेशक, इक़बाल ने सूफ़ी संत मौलाना रूमी को अपना मुर्शिद माना लेकिन इन्होंने सूफीवाद में 'फकीरी' को छोड़ कर्म और संघर्ष करने पर हमेशा ज़ोर दिया। सूफीवाद से उन्हें यह शिकवा रहा कि इसने इंसान को झूठा त्य...