सूफ़ी फाइलें: दमा दम मस्त कलंदर

'उसने उलझा दिया दुनिया में मुझे, वर्ना एक और कलंदर होता..'

दक्षिण एशिया में मानते हैं कि सूफियों में कुल ढाई कलंदर हुए हैं, जिसमें से पहला नंबर पानीपत स्थित पीर बू अली शाह कलंदर का है। दूसरे नंबर पर पाकिस्तान में स्थित लाल शाहबाज कलंदर आते हैं और ईराक की राबिया बसरी को महिला होने की वजह से आधा कलंदर माना जाता है, हालांकि कुछ जानकारों ने इस मान्यता को खारिज भी किया है।

सूफियों के इसी कलंदरी सिलसिले में खानाबदोशी और मलंग हो जाने की रिवायत है। कहते हैं कि आगे चलकर हिंदुस्तान में इसी सिलसिले के कई आम पैरोकार हुए, जिन्होंने अपने पीर बू अली शाह के सुझाए जाने पर जंगली भालू पालकर और तमाशा दिखाकर जीवनयापन करना शुरू किया और 'कलंदर' ही कहलाए जाने लगे। कलंदरों की यह जमात भी सूफी फकीरों की ही तरह खानाबदोश होती है। 

इन्हीं कलंदरों को ओरिएंटलिस्ट गेज़ से देखा गया 'अरेबियन नाइट्स' जैसी रचनाओं में। मज़े की बात यह भी है कि मुग़ल बादशाह बाबर को भी उनकी दरियादिली के लिए इतिहास में 'कलंदर' के नाम से बुलाया गया। 

मोह-माया और दीन-दुनिया छोड़कर दर-दर फिरने वाले इन फकीरों, तमाशबीन मदारियों और बादशाहों को कैसे सूफीवाद का एक सूत्र जोड़ता है, यह सबसे अद्भुत चीज़ है। अल्लामा इक़बाल ठीक ही कह गए,

"क़लंदर जुज़ दो हर्फ़-ए-ला-इलाह कुछ भी नहीं रखता 
फ़क़ीह-ए-शहर क़ारूँ है लुग़त-हा-ए-हिजाज़ी का.."





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