हामिद: एक सियासी ट्रेजेडी

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फिल्म 'हामिद' का ट्रेलर देखने के बाद से इस फ़िल्म का बहुत इंतज़ार था मुझे। 'हैदर' जहाँ कश्मीर की उथल-पुथल से मुतासिर एक नौजवान की कहानी कहती थी, वहीं 'हामिद' ने इस सियासी ट्रेजेडी को एक बच्चे की नज़र से दिखाया है। दोनों ही फिल्मों के नायक अपने खोये हुए पिता को ढूंढ रहे हैं, अपने-अपने तरीके से। फ़िल्म बहुत ही धीमी रफ़्तार से चलती है, जैसे दर्दमंद दिन कटते नहीं हैं न, वैसे ही। खूँखार हालात में मासूम उम्मीदें पालता एक बच्चा, एक 'हाफ-विडो' माँ की मामूल की मुश्किलात और एक फौजी का अंतर्द्वंद पूरे नैरेटिव को बैलेंस करता है। फ़िल्म कोई हल पेश नहीं करती; हालात न तो हामिद बदल पाता है, न फ़ौजी अभय कुमार मगर बेबसी में अंदर से दोनों ही पत्थर हो जाते हैं। कितना ironic है ना? फ़िल्म का हर सीन ख़ूबसूरत है। वक़्त निकाल कर देख लीजिये नेटफ़्लिक्स पर। मरने-मारने की सनक से भरे इन दिनों में इंसानियत की बात कहती एक फ़िल्म बेशक़ देखी जानी चाहिए।

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