फौजी की आज़ादी

भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर ली गयी ये तस्वीर दो फौजियों की है, एक भारतीय और दूसरा पाकिस्तानी। वर्दी के अलग रंगों के सिवा क्या फ़र्क़ है दोनों में? दोनों ही अपने-अपने देश की नौकरी बजा रहे हैं। दोनों ही हाड-माँस से बने हैं। फौज में शायद इसलिए भर्ती हुए हैं ताकि घर-परिवार चल सके। दोनों को ही देशभक्ति की चाबी भरकर इतने मुश्किल हालात में इन सियासी लकीरों की रखवाली करने के लिए झोंक दिया गया है। सियाचिन हो या जैसलमेर, बर्फ़ों में जूझते और रेतीले तूफानों से दो-चार होते हुए एक फौजी क्या ही सोचता होगा? आज़ादी के बारे में ही सोचता होगा यक़ीनन। फौजी को भी तो चाहिए आज़ादी जंग से, खून से, धमाकों से, ठण्डी भारी राइफलों के बोझ से, मुश्किल पोस्टिंग से, सख़्त ड्यूटी से, माहली मजबूरियों से। इंसान ही तो हैं इस कड़क वर्दी के पीछे।