आवाज़ें







SCENE I 

धरती: हमें यूँ रोज़ रोज़ मिलना छोड़ना होगा...लोग क्या कहेंगे ?
सूरज: लोग जो कहेंगे...हम सुन लेंगे ! क्या तुम डरती हो लोगों से ?
धरती: तानें देंगे...मैं टूट जाउंगी
सूरज: तेरे टूटने से भी कोई झरना ही फूटेगा...कोई नयी नदी निकलेगी...कोई नया रास्ता बनेगा
धरती: तू इतना बेफिक्र कैसे है 
सूरज: क्यूंकि मैं आसमान में रहता हूँ न...
धरती: मेरे डर का तुझे ज़रा भी एहसास नहीं...कितना मतलबी है तू..मैं थक गयी हूँ लड़ लड़ के तुझसे..मुझे सोने दे
सूरज: तू तभी सो पाएगी..जब मैं कहीं छुप जाऊंगा..है  ?
धरती: हाँ...अपनी आँखों पे यह रात की ओढ़नी डाल दे...जब तक यह आंखें मुझे देखेंगी..मैं सो नहीं पाऊँगी
सूरज: लोग अभी जाग रहे हैं..ओढ़नी कहीं क्षितिज की खूँटी पर टंगी है...जाना होगा..
धरती: क्यूँ हमारे बीच रोज़ यह क्षितिज की लकीर आ जाती है
सूरज: यह लकीरें फांद लेंगे एक रोज़ हम..! समुन्दर से कहा है...धीरे धीरे डुबो रहा है इस इस क्षितिज को वोह...
धरती: सूरज ! तेरी रोशनी में मुझे अपनी किरणें दिखाई देती हैं...
सूरज: और तेरी मिटटी में मुझे अपना मैला कल ...
धरती: मैंने सुना है एक नदी है..उसमें नहा कर सब मैल धुल जाते हैं..पिछले जन्मों के भी...
सूरज: मैं अपने मटमैला कल धोना नहीं चाहता...उससे एक मकान बनाना चाहता हूँ...दुनिया की नज़रों से बहोत दूर...
धरती: और फिर ?
सूरज:और फिर तेरे साथ उस मकान की खिड़की में खड़े होकर क्षितिज की लकीर को घुलते हुए देखना चाहता हूँ...हमेशा के लिए 
धरती: काश !
                                                         SCENE II

नदी: जब मैं घर से चली थी...ख़ाली हाथ...बेसुध...दिशाहीन..सी थी...कल-कल गाती हुई...रास्ते से सब कुछ उठाकर     अपनी जेबों में भर लिया था..कुछ पत्थर मिले...गले में पेहेन लिए... कुछ फूल..बालों में सजा लिए..कुछ मंज़र..आँखों में बसा लिए..कुछ लोग...साथ बहा लिए...
चट्टान: और फिर तुझे मैं मिल गया...और तू संभल गयी..तू धीमे धीमे बहने लगी..मर्यादा में रहने लगी..मेरे स्पर्श ने तुझे दिशा दी..तेरे बहाव ने मुझे आकर दिया...
नदी: हाँ..मगर मैं बुझ गयी...तेरा अस्तित्व मेरी स्वछंदता के आगे खड़ा था...मैं खुद ही में सिमटने लगी...सिमटते-सिमटते मैं नदी से एक झील बन गयी...
चट्टान: तेरा झील होना कितना रास आया..देख न ! तेरी कोख में कितने फूल और बेलें उग आई हैं...कितनी हरी हो गयी है तू...तू खुश क्यूँ नहीं है ?
नदी: यह बेलें...यह फूल..यह काई...मेरी सांसें भी पी गये हैं..मुझे सांस नहीं आता...कोफ़्त सी होने लगी है..इन गहराईयों का क्या करूँ...इस खामोशी में मेरी आवाज़ कहीं खो गयी है...अपनी ही गहराई में डूब कर मरने का जी चाहता है..
चट्टान: तोह डूब जा..
नदी: डूबुंगी नहीं..ओझल हो जाउंगी..औरत हूँ न..और कर भी क्या सकती हूँ....

SCENE III

माचिस की तीली: आज तू घर क्यूँ नहीं गया देख ! तेरी जेब में पड़े पड़े मैं सिल गयी..जब तू बारिश में भीग रहा था...
आदमी: तू सिल गयी तोह क्या हुआ ! तेरे जैसी बहोत हैं डिब्बी में..कोई और उठा लूँगा
माचिस की तीली: तोह क्या मैं और वो बाकी सब एक जैसी हैं तेरे लिए कोई फर्क नहीं ?
आदमी: फर्क हैं ! बिलकुल है ! तू सिल चुकी है...फिर भी भड़क रही है..और उन्हें देख..कैसे एक दुसरे से सट कर आराम से चुपचाप लेटी हुई हैं..तेरी तरह खामखाँ भड़कती नहीं हैं वोह...
माचिस की तीली: मेरा भड़कना अखरता है तुझे मुझे खरीद कर लाया इसीलिए तोह था ..ताकि मैं भड्कूं और तेरी चिलम सुल्गाउन....फिर अब ?
आदमी: हाँ ! लाया था ! पर तेरा काम था तब भड़कनाजब "मैं" चाहूँ..जब "मैं" तुझे अपनी जेब से बाहर निकालूं...बिना मतलब भड़क के तू मेरी जेब और जेब के पीछे धड़कता दिल..दोनों को जलाती है
माचिस की तीली: हाँ..! रोज़ जलाती हूँ पर शायद राख़ के ढेर को जला रही हूँ..सिर्फ काला धुंआ-सा उठता है..और बदबू आती है.
आदमी: तुझे आदमी नहीं...बारूद चाहिए...
माचिस की तीली: और तुझे माचिस की तीली नहीं..लाश चाहिए...जलाने के लिए...जो गूंगी हो..और तेरी मर्ज़ी पर खाख हो जाए...
आदमी: तू सिल चुकी है...कहाँ जाएगी..इस बाज़ार में तेरा अब कोई खरीददार नहीं..
माचिस की तीली: सुना है..सिली हुई तीलियों की एक बस्ती है...वहीँ रहूंगी अब ! मेरी कोख में शायद अब भी एक चिंगारी हो..उसे तेरी चिलम के धुंए से बहोत दूर करना है...
आदमी: क्या करेगी कैसे जियेगी ?
माचिस की तीली: आग निकालूँगी...चूल्हा जलाऊंगी..!

SCENE IV

भारतवर्ष दैनिक अखबार 

आज की सुर्ख़ियों में सिर्फ शेहेर में भड़के दंगे का ज़िक्र है ! गौरतलब है कि कल शाम क्षितिज के पास वाले कच्चे मकानों में आग लगा दी गयी और मरने वालों में 'धरतीनाम कि एक महिला का पता चला है ! सूत्रों के अनुसारधरती को  जिंदा जलाने से पहले उसका सामूहिक-बलात्कार किया गया ! उसके पास से कोई संसाधन बरामद नहीं हुए हैं..पुलिस को अंदेशा है कि यह आगज़नी लूट के इरादे से कि गयी थी ! 
शेहेर के शुमाली इलाके से खबर आई है कि 'नदी', जो कि काफी अरसा पहले झील में तब्दील हो गयी थी...और शेहरी लोगों के बीच एक 'पिकनिकस्पोट के तौर पर मशहूर थीवोह झील इस साल जलस्तर कम होने कि वजह से सूख गयी है ! प्रशासन ने झील में पानी का स्तर उठाने के लिए आसपास कि नदियों से पानी मंगवाया है ! उम्मीद की जा रही है की झील के दोबारा भरने पर यहाँ बोटिंग का आनंद फिर से लिया जा सकेगा ! 
शेहेर में पिछले साल हुए बम-ब्लास्ट की जांच पूरी हो गयी है ! इसी सिलसिले में शेहेर के गली कूचों से सुराग इकट्ठे किए गये थे और आज ही 'माचिस की तीलीऔर उसकी बेटी 'चिंगारीको गिरफ्तार किया गया है ! इन औरतों पर इलज़ाम है की इन्होने बारूद की मदद से शेहेर के 'चलनको उड़ाने की साज़िश की थी ! 




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