झील, किनारे और गहराई

शिकारा जब झील की ख़ामोशी को छेड़ता था, झील एक धुन की तरह बज उठती थी--और हमें बहाती हुई इस किनारे से उस किनारे तक ले जाती थी।  इस झील का पानी जेहलम से आता है ! जेहलम ज़ख़्मी थी , उसके किनारे बाशिंदों ने छल्ली कर दिए थे ! हर किनारे पर बेहिसाब बेशुमार बस्तियां , बस्तियों के लोग अपना मटमैला कल झील में फेंक देते हैं , जो आज और आने वाले कल तक झील की खामोश सतह पर बेशर्मी  तैरता है ! किसी को झील की ख़ामोशी में दिलचस्पी नहीं थी ! किसी को तस्वीर उतारनी थी, किसी को सामान बेचना था , किसी को नयी सवारी लानी थी ! झील बेशक मजबूर है , कहीं बह कर जा नहीं सकती ; पर कोई नहीं जानता की बेचारी झील गहरा रही है ! उसके किनारे चाहे आज उसके नहीं , मगर उसकी गहराई अब तक उसी की है ! चुपचाप अपनी हरी ख़ामोशी के नीचे वह एक कब्र खोदती है , उनके लिए जो तस्वीर खींचने या सामान बेचने-खरीदने नहीं आते ! उनके लिए जो डूबने आते हैं खामोश नज़ारों में ! 

Comments