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Showing posts from March, 2014

फौजी की घर वापसी

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जब भी छुट्टी पर फौजी शेर सिंह घर आता, साल भर के राशन से कोठरी भरवा देता ! अपने पहाड़ी गाँव में किसी धाम में जाता तो परोसने वाले बेशक़ थक जाते लेकिन फौजी शेर सिंह का मन खाने से नहीं भरता था ! सुबह अपनी बीवी के साथ जंगल में लकड़ियाँ कटवाने जाता तो उसे कहता, "अरी ऐ लक्ष्मी ! वो गीत तो सुना ज़रा..... जो तू पहले गुनगुनाती थी- 'ओ फौजिया ! आम्ब पके हो घर आ .… ' यह सुनकर उसकी बीवी लकड़ियाँ बाँधते-बटोरते हुए हँसने लगती- "तू फौजी कम, सौदाई  ज़यादा है !" छुट्टी जैसे जैसे ख़त्म होने को आती, काम और बढ़ते जाते ! कच्चे मकान पर खपरैल बदलने से लेकर बेटी का दाखिला कॉलेज में करवाने तक; बूढ़े बाप को P.G.I. में दिखाने से लेकर कबीलदारी निभाने तक- फौजी शेर सिंह एक-एक करके सब काम निपटा अपनी ड्यूटी पर चल देता ! पर रिटायर होने के बाद जब फौजी शेर सिंह गाँव वापिस आया तो पहले जैसी बात न रही ! वो भाभी,जो पहले हर बार कैंटीन से लाया हुआ राशन चौखट से ही थाम लेती थी; इस बार बुलाने पर भी नहीं आयी ! फौजी ने जब अपने खेत में बहाई करने की तैयारी की तो बड़ा भाई भी थोडा तल्ख़ हो गया: "देख शेरा ! तू ...

तीलियाँ

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माचिस की डिबिया में दो ही तीलियाँ रह गयी थी ! एक बुझी हुई सरकारी तीली, जिसके चेहरे पर सरकारी रौब था और मन में पेंशन का संतोष ! दूसरी तीली साबुत थी, जलने और जलाने को तैयार; सिर पर ज्वलनशील मसाले के साथ सोचने वाला दिमाग भी था(बेरोज़गार थी शायद) ! दोनों तीलियाँ पीठ से पीठ सटाये अपनी फ्लैट-नुमा माचिस की डिबिया में सुस्ता रही थीं !   बाहर से आवाज़ें आयी ! कोई चिल्ला रहा था शायद ! फिर कमरे की लाइट जली ! साबुत तीली ने सरकारी तीली को उठाया ! सरकारी तीली करवट लेकर सोई रही !  "मैं क्या कर सकती हूँ ! मेरा बारूद जल चुका है ! मैं रिटायर हो गयी हूँ ! सोने भी दे !" साबुत तीली बेचैन होने लगी ! कमरे में आग लग चुकी थी ! सेंक माचिस की डिबिया तक आने लगा ! साबुत तीली से और बर्दाश्त न हुआ ! वो इस जलते हुए कमरे की आग में कूद गयी ! जो आग बुझने ही वाली थी, वो इस तीली से और बढ़ गयी ! सीलन से भरा पूरा कमरा रौशनी और तपिश से जल उठा !  …लेकिन रिटायर्ड सरकारी तीली बेचारी नींद में ही जल कर ख़ाक़ हो गयी !