रानी पद्मावती : आत्म-संदेह का अकादमिक बीजारोपण
एक्टिविस्ट एडवर्ड स्नोडेन का कथन है , " पूरा तंत्र इस विचार के इर्द - गिर्द घूमता है कि अधिकांश लोग उसी बात पर यकीन करने लगते हैं, जिसे बार-बार और ज़ोर से दोहराया जाता है। " हम अक्सर इतिहासकारों को ‘ गैर-इतिहासकारों द्वारा इतिहास-लेखन’ के बारे में शिकायत करते देखते हैं, लेकिन मुझे आश्चर्य है कि कोई भी उन पक्षपाती इतिहासकारों के बारे में शिकायत क्यों नहीं करता है, जो अपने मनगढंत अनुमानों या 'ऐतिहासिक कल्पनाओं' के बाबत् इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं? हाल ही में ' रसकपूर ' पर एक ' ऐतिहासिक उपन्यास ' दर्शकों और आलोचकों को आकर्षित कर रहा है, जिसमें एक ऐसी तवायफ की कहानी है, जिसे राजसी व्यवस्था का शिकार होना पड़ा. लेकिन इस ‘ऐतिहासिक गद्य’ को हाथोंहाथ लेने वाले यही आलोचक यह घोषणा करते मिलेंगे कि राजपूत रानी पद्मावती ( पद्मिनी ) का चरित्र ' काल्पनिक ' था और उस ' कथा ' में शायद ही कोई तथ्य था। क्या यह हैरतअंगेज़ करने वाली बात नहीं है कि कैसे पद्मावती जैसे एक स...