नीलम

"बहन, ज़रा फूलों को हाथ में लेकर पोज़ कीजिए। बिल्कुल 'कभी-कभी' की राखी लगेंगी तस्वीर में!" जबरवान पहाड़ियों के आगे फूलों को हाथ में लिए खड़ी रश्मि की तस्वीर जब उभर कर आई तो वाकई वो किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी। श्रीनगर में बीएड करते हुए उसे 6 माह हो चले थे और इम्तिहान के बाद अब जाकर वो शालीमार और निशात बाग देख पाई थी। रश्मि को यह पहाड़ अपने गांव जैसे ही लगते इसीलिए घर की याद कम आती थी। रश्मि को यहां के बच्चों की पढ़ाई के प्रति लगन देखकर बड़ी खुशी होती थी, क्योंकि अपने यहां उसने ज़्यादातर बच्चों को पढ़ाई से भागते ही देखा था। खुद भी लगन से पढ़ती, बर्फबारी के बाद लाइट चले जाने पर मोमबत्ती की लौ में लेक्चर की तैयारी करती। कई बार रात में सोते हुए कांगड़ी बिस्तर पर गिर जाती तो फटाफट पानी के छींटे देती। कड़ाके की ठंड में रात भर गीले बिस्तर पर सोना भी एक तपस्या जैसा ही होता था। श्रीनगर की गलियों में औरतों को अपने बच्चे का हाथ पकड़कर खरीदारी करने जाते देख वो भी अपने आने वाले कल के सपने देखती। स्थानीय लोगों से मिलने वाली आत्मीयता उसके दिल को भिगोए रहती। कई बार...