सूफ़ी फाइलें | कश्मीरी कला-संस्कृति पर सूफी छाप

कल कश्मीर में शाह-ए-हमदान का 656वां उर्स मनाया गया, वही शाह-ए-हमदान , जिनकी याद में झेलम किनारे बनाई गई खानकाह-ए-मौला श्रीनगर के डाउनटाउन की पहचान है। शाह-ए-हमदान यानी ' मीर सैय्यद अली हमदानी' एक सूफी पीर और शायर हुए, जो ईरान से 15वीं शताब्दी में कश्मीर आए 700 सय्यदों (missionaries) के साथ और कश्मीर में सूफीवाद (के माध्यम से इस्लाम) की बुनियाद रखी। इनके प्रभाव में तकरीबन 37000 लोगों ने इस्लाम अपनाया, जिसका ज़िक्र 'रेशीनामा' में मिलता है और इन्होंने एकेश्वरवाद पर ज़ोर दिया! सिर्फ़ धार्मिक ही नहीं, बल्कि शाह-ए-हमदान ने कश्मीर को सिखाए ऐसे फ़न, जिनसे आज कश्मीर दुनिया भर में मकबूल है, जैसे पशमीना साज़ी, सोज़नकारी, पेपर मशी, कालीन बुनना, सामोवर बनाना वगैरह। शॉल बुनने की कला भी उन्हीं की देन है कश्मीरी बुनकरों को। कहा जाता है कि कश्मीरी पहनावे पर पहले जो स्थानीय प्रभाव था, उसे भी बदलने और उसकी जगह चोगानुमा ईरानी कमीज़ पहनने का सिलसिला भी इन्हीं की सरपरस्ती में शुरू किया गया। अल्लामा इकबाल ने भी माना कि शाह हमदान की सिखाई अद्भुत कला और शिल्प ने कश्मीर...