नाटक के निशान 


"तुझ जैसे एक रंगकर्मी की ज़िन्दगी में शामिल होकर कुछ ड्रामा, कुछ रौशनी और कुछ अँधेरा मेरे भी वजूद का हिस्सा हो गया है। तू नाटक खेलता है और मैं दर्शक बन कर अपनी ही ज़िन्दगी का मंचन देखती हूँ। क्या कोई स्क्रिप्ट भी है? मैं पढ़ सकती हूँ? या फिर दर्शक होकर नाटक के घटित होने का इंतज़ार करना होगा? 

स्टेज की ही तरह तेरी दुनिया में शामिल किरदारों और कोनों पर रोशनी के कुछ स्पॉट्स हैं, इर्द गिर्द अंधेरा है। पर्दा तो है पर पर्दादारी नहीं है। सीन दर सीन हैं। कुछ-कुछ नज़र आता है और फिर सब कुछ फेड-आउट हो जाता है। 


रंग हैं, रंगमंच है, रंगीनियाँ हैं पर ये रंग कच्चे हैं या पक्के हैं, ये फ़र्क़ पता नहीं लगता। आवाज़ें हैं चढ़ती-उतरती हुईं, चेतना की दीवारों से टकराती हुईं। सुर्ख़ स्याह पोस्टर हैं मोटी लिखाई में शीर्षक लिए हुए। अरे ! ये तो तेरा मेरा नाम है। हमारी कहानी है। 

सुन ! क्या तू भी विंग में छुप कर नक़ाब बदलता है ? क्या तू भी नए किरदारों के लिए मेन्टल-मेकअप की मोटी परत चढ़ाता है? दर्शक की कुर्सी पर मुझे बैठे देख क्या तेरे हाथ-पाँव काँपते हैं ? क्या कभी रटे हुए संवाद भूलने से लगते हैं? 

इस चकाचौंध रोशनी से तेरी उत्सुक आँखें थकती नहीं हैं? या फिर तू इस लाइमलाइट में नहा कर और ऊर्जा पाता है? उम्र के उस खामोश दौर में क्या होगा जब ये रौशनी और तालियाँ ठंडी पड़ जाएँगी और स्टेज की स्पॉटलाइट में नए चेहरे नहाएँगे? तालियाँ और हुंकारे तेरी हौसला-अफ़ज़ाई करते हैं और इधर मैं इस गड़गड़ाहट में अपने अंदर मचा सवालों का शोर भूल जाती हूँ।

कहानी स्टेज पर पैरहन बदलती है। तू कोई अनजान किरदार ओढ़े आता है, पराई-सी निगाहों से दर्शकों में मुझे बैठे देखता है और नज़र फेर कर स्टेज पर खड़ी अपनी नायिका की आँखों में खो जाता है। मैं तड़प जाती हूँ। तेरे और मेरे बीच ये प्रोसीनियम की दीवार खड़ी पहरा देती है और तू कोई और होकर मुझे भूल अपने संवाद बोलता है। मैं इंतज़ार करती हूँ कि गलती से तू नाटक की नायिका की जगह मेरा नाम ले देगा पर सीन ख़त्म होता है और तू अपने किरदार को लपेटे हुए अँधेरे में खो जाता है। मेरे दिल की धड़कनें दौड़कर तेरी धड़कनों में समा जाना चाहती हैं। 

पर्दे गिरते हैं, नक़ाब पलटते हैं और नाटक ख़त्म होता है। मेकअप धोया जाता है, कॉस्ट्यूम्स संभाले जाते हैं और प्रॉप्स समेटे जाते हैं। स्टेज पर ओढ़े सब किरदार बैकस्टेज में  छोड़ कर तू मेरे पास आता है और हम दोनों नाटक के निशान लिए वापिस अपने घर लौट आते हैं।"

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