नाटक के निशान

"तुझ जैसे एक रंगकर्मी की ज़िन्दगी में शामिल होकर कुछ ड्रामा, कुछ रौशनी और कुछ अँधेरा मेरे भी वजूद का हिस्सा हो गया है। तू नाटक खेलता है और मैं दर्शक बन कर अपनी ही ज़िन्दगी का मंचन देखती हूँ। क्या कोई स्क्रिप्ट भी है? मैं पढ़ सकती हूँ? या फिर दर्शक होकर नाटक के घटित होने का इंतज़ार करना होगा? स्टेज की ही तरह तेरी दुनिया में शामिल किरदारों और कोनों पर रोशनी के कुछ स्पॉट्स हैं, इर्द गिर्द अंधेरा है। पर्दा तो है पर पर्दादारी नहीं है। सीन दर सीन हैं। कुछ-कुछ नज़र आता है और फिर सब कुछ फेड-आउट हो जाता है। रंग हैं, रंगमंच है, रंगीनियाँ हैं पर ये रंग कच्चे हैं या पक्के हैं, ये फ़र्क़ पता नहीं लगता। आवाज़ें हैं चढ़ती-उतरती हुईं, चेतना की दीवारों से टकराती हुईं। सुर्ख़ स्याह पोस्टर हैं मोटी लिखाई में शीर्षक लिए हुए। अरे ! ये तो तेरा मेरा नाम है। हमारी कहानी है। सुन ! क्या तू भी विंग में छुप कर नक़ाब बदलता है ? क्या तू भी नए किरदारों के लिए मेन्टल-मेकअप की मोटी परत चढ़ाता है? दर्शक की कुर्सी पर मुझे बैठे देख क्या तेरे हा...