घर और बाहर | रवींद्रनाथ टैगोर

रवींद्रनाथ टैगोर की कृति 'घर और बाहर' के अलग-अलग रिव्यू पढ़ने के बाद से पूर्वाग्रह तो था पर राष्ट्रवाद और रिश्तों के ताने-बाने से बुनी इस कहानी को अपने विवेक से रेज़ा-रेज़ा खोलने की तलब थी, इसलिए खुद ही पढ़ी। कहानी किसी सूत्रधार या बाहरी नज़रिए से नहीं कही गई है बल्कि तीन प्रमुख किरदारों-बिमला, निखिलेश, संदीप के निजी पक्षों के माध्यम से लिखी गयी है, जो समय और हालात के साथ बदलते रहते हैं। बिमला और निखिलेश के दाम्पत्य जीवन की संवेदनशील बारीकियों के चित्रण से लेकर अंग्रेज़ी संस्कृति का कुलीन ज़मींदारी परिवारों पर प्रभाव इसमें किरदारों के नज़रिए से दर्शाया गया है, जो किसी भी value-judgement से मुक्त है। अंग्रेजी शासन के दौरान बंगाल में अतिवादी-राष्ट्रवाद की ज्वाला का भड़कना, उस ज्वाला पर कईयों का हाथ सेंकना और उसी ज्वाला से कई घरों का जल कर राख हो जाना पाठक को अतिवाद और राष्ट्रवाद, दोनों का दोबारा आकलन करने को मजबूर करता है। वहीं निखिलेश और संदीप के लिए स्त्रीवाद के अलग-अलग मायने होने और उसके अलग-अलग प्रयोग से यह भी साफ होता है कि कैसे विचारधाराओं का नाम लेकर ल...