Posts

Showing posts from March, 2016

आवाज़ें

Image
SCENE I  धरती : हमें यूँ रोज़ रोज़ मिलना छोड़ना होगा...लोग क्या कहेंगे   ? सूरज : लोग जो कहेंगे...हम सुन लेंगे ! क्या तुम डरती हो   लोगों   से   ? धरती : तानें देंगे...मैं टूट जाउंगी सूरज : तेरे टूटने से भी कोई झरना ही फूटेगा...कोई नयी नदी निकलेगी...कोई नया रास्ता   बनेगा धरती : तू   इतना बेफिक्र कैसे है   ?  सूरज : क्यूंकि मैं   आसमान   में   रहता   हूँ   न... धरती : मेरे डर का तुझे ज़रा भी एहसास नहीं...कितना मतलबी है तू..मैं थक गयी हूँ लड़ लड़ के तुझसे..मुझे सोने   दे सूरज : तू तभी सो पाएगी..जब मैं कहीं छुप जाऊंगा..है   न   ? धरती : हाँ...अपनी आँखों पे यह रात की ओढ़नी डाल दे...जब तक यह आंखें मुझे देखेंगी..मैं सो   नहीं   पाऊँगी सूरज : लोग अभी जाग रहे हैं..ओढ़नी कहीं क्षितिज की खूँटी पर टंगी है...जाना होगा.. धरती : क्यूँ हमारे बीच रोज़ यह क्षितिज की लकीर आ जाती है ?  सूरज : यह लकीरें फांद लेंगे एक रोज़ हम..! समुन्दर से कहा है...धीरे धीरे डुबो रहा ...