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पौराणिकता के मायाजाल में उलझे महाराणा प्रताप

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निर्मित धारणाओं और छवि चमकाने वाली पीआर फैक्ट्रियों के समय में , यह आम बात है कि इंसानों को ' अतिमानव ' बना दिया जाता है और सत्य की जगह   पोस्ट ट्रुथ ले लेता   है। इतिहास का तोड़ा - मरोड़ा जाना , अतिशयोक्ति या दुष्प्रचार करना इस वैश्विक प्रवृत्ति में कोई नई बात नहीं है।   इतिहास में पहले भी हल्के बदलाव के साथ प्राच्यवादी नज़र ( ओरिएंटलिस्ट गेज़ ) ने इस तरकीब का इस्तेमाल उस लेंस को बदलने के लिए किया था , जिससे दुनिया पूर्व को देखती थी। इसी तर्ज़ पर   शीत युद्ध के दौर में सिनेमा ने कुछ समुदायों को बदनाम करने या विशिष्ट विचारधाराओं को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रचार उपकरण के रूप में काम किया। ऐसे ही   अफ्रीकी और एशियाई इतिहास , साहित्य और संस्कृति के ' आंग्लीकरण ' ने एशियाई और अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए उनकी अपनी पहचान को ही पराया बना दिया गया।   मध्यकालीन मेवाड़ के शासक , महाराणा प्रताप का मामला भी कुछ ऐसा ही है , जिनकी छवि को क...