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Showing posts from January, 2022

प्रील्यूड टू ए रायट : हमारे समय का हल्फनामा

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ऐनी ज़ैदी का उपन्यास 'प्रील्यूड टू ए रायट ' हमारे ही इस खतरनाक समय का हलफनामा है, जहां नफरतें, बेल-बूटियों की तरह हमारे घर-आंगन तक बढ़ आई हैं और ज़हरीला धुआं पूरे समाज के फेफड़ों में भर गया है, किसी भी समय एक शहर को आग में झोंका जा सकता है और सब अपनी-अपनी बारी के इंतज़ार में हैं। यह नफ़रत कभी प्रवासी मजदूरों तो कभी गैर धर्म के लोगों तो कभी औरतों के लिए उमड़ती-घुमड़ती मिल जाती है।  सांप्रदायिक और हिंसक होते आस-पड़ोसियों से डर कर छटपटाते किरदारों की आवाज़ें इस उपन्यास में साफ़ सुन पाएंगे। 'प्रील्यूड टू ए रायट' को पढ़ते हुए प्रियम्वद के लिखे उपन्यास ' वे वहां कैद हैं' की याद आई। स्टोरीटैलिंग का अंदाज़ रूटीन लेखन से अलग है। आप भी पढ़िए...

किराएदारी : अस्थाई पते वालों की दुनिया

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कभी टपकती हुई छत से मजबूर होकर, कभी लड़ाके पड़ोसियों और चौकीदारों से परेशां होकर, कभी बढ़ते किराए तो कभी मकानमालिकों की शक़ी इन्क्वारियों से दुखी होकर ही एक शहरी किराएदार अपना मकान छोड़ता है और नए मकान को ढूंढने की कवायद में ऐसे-ऐसे तजुर्बों से गुज़रता है कि ऐसा एक लेख लिखने की ज़रूरत उसे महसूस हो जाती है।  यूँ तो घर वह होता है जहाँ रहते हैं हमारे घरवाले, जहाँ होता है आँगन और जहाँ जुड़ी होती हैं बचपन की यादों वाली गहरी जड़ें। शहरी मकान तो बस हुआ करते हैं डेरा , जो कामचलाऊ होता है, जो रैन-बसेरा से थोड़ा ज़्यादा स्थाई और धर्मशाला से थोड़ा कम सार्वजानिक होता है, लेकिन ज़रूरत के सब ज़रूरी माल-ओ-सामान यहाँ जुटाए जाते हैं ताकि घर का मिनिमलिस्ट रेप्लिका जैसा बन जाए, बिना किसी मुसलसल ' पैरेंटल गाइडेंस '' के।  ज़्यादातर बैचलर और पढ़ने लिखने वालों के घर बिखरे हुए, किताबों से अटे हुए, धूल से सने हुए, रंग बिरंगे पोस्टरों से भरे हुए मिलते हैं जिनमें जूठे बर्तनों और मैले कपड़ों के छोटे-मोटे अरावली और शिवालिक मिल जाएंगे। जवान उत्सुकताओं के सबूत सिगरेट के खाली पैकेट और बियर की...