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कुफ़्र-चौक

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जिस दिन गोविन्द के जवान बेटे की मौत की खबर आई, उस दिन गांव में सुगबुगाहट थी कि कहीं ये शरीकों की पुरानी दुश्मनी का नतीजा तो नहीं ! जब शंकर का परिवार शोक-सभा में भी शामिल नहीं हुआ, तब तो मानो सबको ये यकीन हो गया कि हो न हो, शंकर ने ही जादू-टूना करवा कर गोविन्द के बेटे को मरवाया है ! निर्माणाधीन हाउसिंग-बोर्ड के टी-जंक्शन पर अक्सर जादू-टोटके वाली थालियां और गुड़ियाँ पड़ी मिलती थीं, तब से  गांववालों ने इसे कुफ़्र-चौक कहना शुरू कर दिया था ! अफवाह थी कि शंकर की हाउसिंग-बोर्ड में चौकीदारी की नाईट-ड्यूटी थी और अक्सर वही कुफ़्र-चौक पर टूने-टोटके वाली थालियाँ और दुपट्टे छोड़ आता था ! इस घटना के बाद से लोगों ने शंकर से उलझना और बरतना कम कर दिया था ! ये अफवाहें सुन कर शंकर और उसका परिवार खुद आहत थे मगर गाँव के एक-एक आदमी को कैसे यकीन दिलाते कि इसमें उनका कोई लेना-देना नहीं है ! गाँव के मिस्त्री ने भी जब उनका मकान बनाने से मना कर दिया तब बेबसी में शंकर ने अपने लड़कों से ही चिनाई करवाई और पलस्तर भी खुद ही किया ! बेटी की शादी सिर पर थी और मकान बनाने पर खर्चा बढ़ गया था ! ऐसे में उनके ऊपर लगते जादू-ट...