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साहिल, लहर और सागर के नाम ...

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  साहिल और लहर की मोहब्बत तो अरसों और बरसों से थी ! लहर सारा दिन सफ़ेद लिबास पहने नाचती रहती और साहिल दूर बैठा उसे देखता ! कभी लहर आकर साहिल के चेहरे को पानी के छींटों से भिगो देती और कभी ज़ोर से टकरा कर भाग जाती ! छू -छुआई के इस खेल में साहिल और लहर इस कदर डूबे रहते कि सूरज के चढ़ने-डूबने को भी देखते नहीं थे !  एक दिन किसी बात पर दोनों झगड़ पड़े ! साहिल मर्द था, अपनी जगह से नहीं हिला ! लहर भी गुस्से में आकर साहिल से बारहा जा टकराई ! चाँद इस ज्वार-भाटे का गवाह बनकर सब चुपचाप देखता रहा !  अगली सुबह लहर साहिल से मिलने नहीं आई ! हालाँकि कई लोग शांत लहर और खामोश साहिल को देखने ज़रूर आए ! कई दिन बीते ! साहिल उस ज्वार-भाटे की चोटों से ज़ख़्मी था ! किनारे टूटने लगे थे ! बहने लगे थे ! लोगों ने साहिल पर आना कम कर दिआ ! साहिल वीरान सा बैठा ऊंघता रहता ! अब भी लहर का इंतज़ार करता ! क़तरा-क़तरा बिखरता रहता !  और फिर…… एक रोज़ हवा ने साहिल का एक मज़बूत पेड़ गिरा दिया ! साहिल अब भी कुछ न बोला ! अपने लुटते-गिरते हुए मकानों और पेड़ों से मुँह फेर कर लहर के आने का इंतज़ार करता रहा !  हवा ...